शादी-विवाह, जन्म-मरण
इस सबमें धर्म का किरदार सबसे अहम माना जाता रहा है। संस्कृति और परम्पराओं का
उपयोग और दोहन भी धार्मिकता से परे हटकर नहीं देखा जा सकता। लेकिन इसके बावजूद 21 वीं सदी सूचना के तमाम माध्यमों के बीच
आज इस्लाम के अन्दर से भी धार्मिक नवजागरण की आवाज दबे स्वर में ही सही पर आने लगी
है। एक ऐसी पाकिस्तानी लड़की जिसका जन्म ब्रिटेन में हुआ है जो अपनी शादी को लेकर
असमंजस में है और वह इस सवाल से जूझ रही है वह कहती है में जानना चाहती हूं कि
क्या चचेरे भाई से शादी करनी चाहिए और क्या रिश्ते में भाई-बहनों के बीच शादी एक
सही फैसला होता है? इनमें
मेरे दादा-दादी भी शामिल हैं लेकिन अगर मैं ऐसा करने से इन्कार कर दूं तो क्या ये
मेरा पागलपन होगा या मुझे इस परम्परा से छुटकारा पा लेना चाहिए?
दरअसल हिबा नाम की यह 18 साल की
ब्रितानी पाकिस्तानी लड़की इस्लामिक परम्पराओं पर सवाल ही नहीं खड़े कर रही बल्कि इन
परम्पराओं की तह तक जाने की कोशिश भी कर रही है। लेकिन एक रुढ़िवादी समाज में क्या
उसके जवाब सही से मिल पाएंगे? इस सवाल
का जवाब खोजते वह अपने घरवालों से लेकर पाकिस्तान जाकर अपने उन चचेरे भाइयों से
मुलाकात की जिनसे उसकी शादी हो सकती थी। धार्मिक से लेकर वैज्ञानिक तथ्यों के आधार
पर कजन-मैरिज के सही-गलत होने की पड़ताल भी की। हिबा लिखती है कि मैंने इस मुद्दे
पर सबसे पहले अपनी उम्र के युवा भाई-बहनों से बात की लेकिन कोई भी कैमरे पर आकर बात
नहीं करना चाहता था।
मैंने इस बारे में अपनी मां, पिता और अपने अंकल से बात की। अंकल ने
बताया कि एशिया में शादी सिर्फ दो लोगों के बीच नहीं, परिवारों के बीच भी होती है, बेहतर होता है जब दोनों परिवार मूल्यों
को साझा करते हैं इसलिए ऐसी शादियां किसी बाहरी शख्स से शादी करने से बेहतर होता
है। मेरे अंकल ने इसे इतने खूबसूरत अंदाज में समझाया है कि मुझे ऐसी शादियों के
सफल होने की बात समझ में आने लगी है। उन्होंने मुझे मेरे परिवार में हुई ऐसी
शादियों के बारे में बताया। इसके बाद मां ने भी उनके परिवार में हुई ऐसी शादियों
के बारे में बताया। ऐसी शादियों का आंकड़ा काफी ज्यादा है बल्कि पाकिस्तान में तो 75 प्रतिशत शादियां भाई-बहनों के बीच हुई
हैं।
इस सबकी पड़ताल के लिए हिबा पाकिस्तान आई उसने देखा कि लड़कों को ऐसी शादियों
से एतराज नहीं था लेकिन लड़कियां जेनेटिक गड़बड़ियों का हवाला देते हुए इन्हें बेहतर
नहीं बताती थीं। हीबा कहती है चचेरे भाई-बहनों में शादी से बच्चों के बीमार पैदा
होने की बात मेरे लिए काफी डराने वाली थी। इसके बाद मैंने ब्रिटेन आकर एक ऐसे
सम्बन्धी से मुलाकात की जिन्होंने अपनी चचेरी बहन से शादी की थी जिनके दो बच्चे ऑटिज्म
के शिकार थे। फिर मैंने अपने मौलवी से जाकर इस बारे में बात की तो उन्होंने मुझे
बताया कि कुरान में इसका जिक्र नहीं है और ये पारम्परिक चीज है। इसका धर्म से
सम्बन्ध नहीं है।
हिबा कहती है कि उस परिवार से मिलना मेरे लिए एक दर्दभरा अनुभव था। इसने
मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मैंने ब्रिटेन आकर एक रिसर्च देखी जिसमें साल 2007 से 2010 के बीच ब्रेडफोर्ड में पैदा होने वाले
बच्चों में जन्मजात बीमारियों का जिक्र था। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 13, 500 बच्चे पैदा हुए जिनमें से तीन फीसदी
बच्चे ब्रिटिश पाकिस्तानी थे। इनमें से 30 प्रतिशत बच्चे जेनेटिक बीमारी के साथ
पैदा हुए। लेकिन मैंने इस सबके बाद अपनी मां से बात की तो पता चला कि उन्होंने
अपने पहले चचेरे भाई के साथ शादी की थी लेकिन वह सिर्फ 18-20 महीने तक चली थी। मैं अपनी मां पर गर्व
करती हूं कि वह उस शादी से बाहर आ गईं क्योंकि पाकिस्तानी समुदाय में इसे ठीक नहीं
समझा जाता है। इस सबके बाद मैंने तय किया है कि मैं किसी चचेरे भाई के साथ शादी को
लेकर सहज महसूस नहीं करती हूं और मैं नहीं करूंगी।
हिबा की यह कहानी इसी माह बीबीसी पर प्रकाशित हुई थी जिसने मुस्लिम समाज की
रुढ़िवादिता पर जमकर प्रहार किया। एक मुस्लिम लड़की के लिए यह देखना काफी खतरनाक था
कि वह परम्परा को लेकर सवाल उठा रही है जोकि इस्लामी समाज में जायज नहीं समझा
जाता। किन्तु उसने इस बात की चिंता नहीं कि और इस परम्परा को जो आज सीधे धर्म से
जोड़कर देखी जाती है उसने इसे विज्ञान का आईना दिखाकर नकारा।
दरअसल विज्ञान और हमारे शास्त्रों का मत भिन्न नहीं है वैदिक धर्म में एक
ही गोत्र में शादी करना वर्जित है क्योंकि सदियों से ये मान्यता चली आ रही हैं कि
एक ही गोत्र का लड़का और लड़की एक-दूसरे के भाई-बहन होते हैं और भाई बहन में शादी
करना तो दूर इस बारे में सोचना भी पाप माना जाता है। इस कारण वैदिक धर्म एक ही
गोत्र में शादी करने की इजाजत नहीं देता है। ऐसा माना जाता है कि एक ही कुल या एक
ही गोत्र में शादी करने से इंसान को शादी के बाद कई तरह की समस्याओं का सामना करना
पड़ता है। इतना ही नहीं इस तरह की शादी से होनेवाले बच्चे में कई अवगुण भी आ जाते
हैं। सिर्फ हमारे शास्त्र ही नहीं बल्कि विज्ञान भी इस तरह की शादियों को अमान्य
करार देता है। वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो एक ही कुल या गोत्र में शादी करने
से शादीशुदा दंपत्ति के बच्चों में जन्म से ही कोई न कोई आनुवांशिक दोष पैदा हो
जाता है। एक ही गोत्र में शादी करने से जीन्स से संबंधित बीमारियां जैसे कलर
ब्लाइंडनेस हो सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों में समान गोत्र में
शादी न करने की सलाह दी गई है।
वैदिक संस्कृति के अनुसार, एक ही
गोत्र में विवाह करना वर्जित है क्योंकि एक ही गोत्र के होने के कारण स्त्री-पुरुष
भाई और बहन हो जाते हैं इस कारण पाकिस्तान की हिबा का फैसला वैचारिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक रूप से
नवजागरण की दिशा में एक सही कदम है।
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