‘अलग खालिस्तान’ के लिए हुए विद्रोह से पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हमला हुआ था, कारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद (1) को चुनौती दी गई थी क्योंकि अनुच्छेद (1) कहता है कि भारत राज्यों का एक संघ होगा. किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का
अधिकार नहीं है. जिस तरह की व्यवस्था अमेरिका में है, वैसी ही भारत ने अपनाई है. मतलब साफ है कि खालिस्तान रुपी स्वतंत्र राज्य की
मांग नाजायज थी, जैसे आज कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की है| किन्तु खालिस्तान की
मांग करने वाले चरमपंथी किसी भी सूरत में देश के सविंधान को मानने से इंकार कर रहे
थे देश में पहली बार किसी मंदिर को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए सेना
हथियारबंद होकर पहुंची और इतिहास ने हमेशा- हमेशा के लिए करवट बदल ली। मंदिर तो आजाद हो गया, लेकिन साथ ही गहरे जख्म देकर आज एक प्रश्न खड़ा कर गया कि जब देश के सविंधान की रक्षा के लिए आस्था पर हमला हो
सकता है! क्या जेएनयू में लड कर आजादी, भारत की बर्बादी तक
जंग जारी रखने वालों की गिरफ्तारी भी नहीं हो सकती? खालिस्तानी तो सिर्फ
अलग देश मांग रहे थे,यह लोग तो भारत की बर्बादी तक जंग जारी रखने की बात कर रहे
है|
स्वर्ण मंदिर में भीषण
खून-खराबा हुआ था। अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया। स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ
चलीं। कई सदियों में पहली बार वहाँ से पाठ छह, सात और आठ जून को नहीं हो पाया। ऐतिहासिक द्रष्टि से महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय
जल गया| भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए। 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे
गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ्तार
किया गया। लेकिन ये आंकड़े विवादित माने जाते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या धार्मिक
और शिक्षण संस्थान, स्थलों की आड़ में उग्रवाद जैसी गतिविथियों को सहन किया जा सकता है? निश्चित रुप से नहीं? क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो धार्मिक और शैक्षिक स्थल उग्रवादियों के गढ़ बन
जाएंगे और देश भर में अराजकता व अशांति का
माहौल पैदा हो जाएगा| आज पाकिस्तान में उग्रवाद चरम स्थिति पर है| कारण मदरसों में
उग्रवाद का प्रवेश शिक्षण संस्थान राजनीति उग्रवाद के अड्डे बन गये| क्या भारत के
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल भारत में अराजक तत्वों को स्वीकार करेंगे? यदि नहीं तो कांगेस व् विपक्षी दलों को सरकार की कारवाही का विरोध नहीं करना
चाहिए| सब जानते है आज वहां पढ रहे सभी छात्र आतंकी नहीं है
किन्तु उस सोर्स का तो पता चलना चाहिए जहाँ से उन्हें यह देश विरोधी नारे और
मानसिकता मिल रही है| राहुल गाँधी का मोदी विरोध राजनैतिक द्रष्टिकोण से जायज माना
जा सकता है किन्तु विरोधी तत्वों का खुलेआम समर्थन करना हर किस्म से नाजायज है|
कांगेस और राहुल गाँधी को समझना होगा जब राहुल की दादी देश विरोधी तत्वों पर टेंक
लेकर आतंकवाद के साथ किसी की आस्था पर भी हमला कर सकती है तो क्या आज भारत सरकार
देश विरोधी तत्वों को गिरफ्तार भी नहीं कर सकती? कहीं आप राजनैतिक लालसा में आतंक
और राष्ट्र विरोधी मानसिकता का पक्ष तो नहीं ले रहे है? जरूरत उन लोगों की गिरफ्तारी के विरोध की नहीं थी जरुरत इस बात की है कि
धार्मिक स्थलों, शिक्षण संस्थानों, और राजनीति की कड़ी से कड़ी सुरक्षा की जाए ताकि कोई उग्रवादी उनमें प्रवेश कर इनकी पवित्रता का हनन न कर पाए, सकारात्मक द्रष्टिकोण, अच्छी शिक्षा और अनुभव के फलस्वरूप तैयार किए जाने
वाले शिक्षण संस्थानों की बेहतर सुविधाएं मिलने से विद्यार्थियों के भविष्य की
नींव मजबूत होती है जिससे कि वे अपने जीवन में सफलता की बुलन्दियों को छूने में
कामयाब तो होते ही हैं, साथ में देश और समाज को भी उन्नत बनाने में सहयोग करते है| यदि सत्ता की लालसा
में आज इन लोगों को बचाया गया तो कल देश के हालात मीडिल ईस्ट जैसे होने में देर नहीं
लगेगी| जिस तरह कल गृहमंत्री जी ने आतंकी हाफिज सईद का नाम लिया इसमें कोई संदेह
नहीं करना चाहिए की खालिस्तान की तरह जेएनयू में हुआ बवाल पाक प्रायोजित ना हो!
क्योंकि इनकी गिरफ्तारी का विरोध पाकिस्तान, हाफिज समेत अलगाववादी नेता भी कर रहे
है, साथ में राहुल गाँधी भी कर रहा है| तो इसमें राहुल को अपनी
भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए कि वे कांग्रेस के नेता है या अलगाववादी विचार धारा के
समर्थक है? आज सरकार को जेएनयू में कड़े कदम उठाने चाहिए और विपक्ष को इन छात्रों द्वारा
किये गये कृत्य की कडी आलोचना करनी चाहिए| आज हमे ध्यान इस बात का भी रखना होगा कहीं केंद्र सरकार को कमजोर करने के
चक्कर में हम देश की एकता अखंडता को कमजोर तो नहीं कर रहे है?
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