सितम्बर,
1920 में असहयोग
आन्दोलन छिड़ा था आज 95 साल बाद देश के अन्दर सहिष्णुता का आन्दोलन छिड़ा है| अब हम
चाहते है जब देश को सहिष्णु बना ही रहे है तो क्यों न पुरे देश को ही सहिष्णु
बनाया जाये क्योंकि ये क्षेत्रवाद देश के लिए घातक है सबसे पहले सहिष्णु टीम को
मेरा आमन्त्रण कश्मीर घाटी के अन्दर है, जहाँ रोजाना ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान।’ के
नारों के साथ सेना के जवानों और हिन्दुओं पर हमले होते हैं| दादरी में इखलाक की
हत्या के बाद से देश को सहिष्णुता
का पाठ पढ़ाने निकले इन सेकुलर जमात के ठेकेदारों से मेरा पहला प्रश्न यह है कि क्या ये लोग इस भारतीय क्षमा सहिंता का
यह पाठ कश्मीर को भी पढ़ा सकते है? जहाँ के अखबार भी मजहबी मानसिकता का शिकार होकर
लिखते है कि कश्मीर घाटी में हिंदुओं को बसाकर, लाखों सैनिकों को तैनात कर और तथाकथित
चुनावों के जरिए
कठपुतली सरकार बनवाने से कश्मीर भारत का अटूट अंग नहीं बन जाता है।
दूसरा प्रश्न क्या यह
लोग वहां के उन मजहबी ठेकेदारों जो मस्जिद की मीनार से कहते है कि कश्मीरियों ने
अपनी तीन पीढियां स्वतंत्रता के लिए बलिदान की हैं, वो भला कैसे भारत के गुलाम रह सकते हैं,
इसलिए दुनिया जल्द वो दिन देखेगी जब कश्मीर
में स्वतंत्रता का सूरज निकलेगा। उन्हें भी सहिष्णुता का पाठ पढ़ा सकते है? या फिर
कश्मीरी पंडितो को वापिस कश्मीर में बसाने की बात करना ही इन लोगों को असहिष्णुता
नजर आती है आज देश में इन लोगों ने एक नई विडम्बना पैदा कर दी हैं गौहत्या के
खिलाफ बोलना, कश्मीर, बंगाल के हिन्दुओं की बात करने को यह लोग साम्प्रदायिकता
कहते है जो गाय को इनका निवाला बना दे तो
वो इन्हें सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष नजर आते हैं| आखिर कौन है ये लोग कहीं ये वो ही
तो नहीं जो याकूब की फांसी के खिलाफ पूरी रात सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर खड़े रहे
थे? या वो जो आतंकी अफजल गुरु की फांसी पर रोये थे? पर यह लोग जब कहाँ थे जब
चट्टीसिंहपूरा में मजहबी पागलों के झुण्ड ने निर्दोष हिन्दुओं को सामूहिक रूप से कत्ल किया था चलो ये घाव
पुराना है शायद इन्हें अपने सेकुलर चश्मे से दिखाई न दे पर अभी हाल ही में जम्मू
कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद नकाबपोश प्रदर्शनकारियों ने तिरंगा जलाया. उनके और सुरक्षाबलों
के बीच झड़प में 14 सेना के जवानों समेत करीब हजारों लोग घायल हो गए है अब इनका यह सहिष्णुता
का झुनझुना कहाँ है ? अभी कुछ दिन पहले पीडीपी विधायक पीर मंसूर जी ने आम जनता को संबोधित
करते हुये
कहा था कि कश्मीर मे मुसलमान बहू संख्यक है, इसलिये कोई गैर मुस्लिम मुख्य मंत्री नही बन सकता
है क्यों नही बन सकता जबकि इस देश मे महबूबा जी के पिता जी ग्रह मंत्री भी रह चुके
है और देश मे
तीन राष्ट्रपति भी हो चुके है [जाकिर हुसैन जी ,फ़ख़रुद्दीन जी , कलाम जी] और आज भी उप राष्ट्र पति जी एक
मुस्लिम है क्या यह सहिष्णुता सिर्फ हिन्दुओं के लिए हैं ? क्योंकि भारत के अन्य राज्यो
मे भी मुस्लिम मुख्य मंत्री रह चुके है राजस्थान महाराष्ट्र असम और बिहार आदि
शामिल रहे है| लेकिन इस बात को कहते वक्त ये तथाकथित बुद्दिजीवी धर्मनिरपेक्षता की
जुगाली कर जाते है आज कसूरी की किताब के विमोचन पर यह लोग सहिष्णुता का पाठ पढ़ा
रहे है लेकिन जब सलमान रुश्दी की किताब शैतानी आयते (सेटेनिक वर्सेस ) पर प्रतिबंद
लगाया जब ओवैसी बंधू 15 मिनट पुलिस हटाकर हिन्दुओं को देख लेने की बात कहता है तब
इनके असहिष्णुता के मापदंड क्या थे ? शायद वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती सही कहती है
कि ये लोग लेखक और इतिहासकार नहीं सत्ता के माफिया हैं जो इखलाक पर रोते है पर कश्मीर
पर इनके हलक सूख जाते हैं इखलाक की मौत पर अपने पैने पंजे ज़माने वाले राजनेता और
कलाकार एक बार जनेऊ धारण कर सर पर शिखा रख श्रीनगर लाल चौक पर घूम आये शायद सहिष्णुता
की सही परिभाषा का पता लग जाये !
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ....
राजीव चौधरी
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