पाकिस्तान ने भारत की
गीता सकुशल लौटा दी जिसकी चहुँ ओर प्रशंसा हो रही है। 23 साल की हो चुकी गीता उस समय महज सात या आठ साल की थी, जब वह आज से 15 साल पहले पाकिस्तानी रेंजर्स को लाहौर रेलवे स्टेशन पर
समझौता एक्सप्रेस में अकेली बैठी मिली थी. पाकिस्तान में मानव अधिकार संगठन और
सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली संस्था बिलकीस एदी ने मूकबधिर गीता को गोद ले
लिया था और तब से वह उनके साथ कराँची में ही रहती थी। गीता की कहानी फिल्मी कहानी
की तरह है। गीता ने अपने परिवार को एक तस्वीर के जरिए पहचाना था। यह तस्वीर उसे
इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग ने भेजी थी। गीता का परिवार कथित तौर पर बिहार
से है फैजल एदी के अनुसार, गीता ने उन्हें साकेंतिक भाषा में बताया था कि उसके पिता एक बूढे
व्यक्ति थे और उसकी एक सौतेली मां और सौतेले भाई-बहन थे। बहरहाल गीता वापिस आ गयी अब उसके असली
माता-पिता खोजे जाने बाकी है। भारत सरकार की ओर से गीता की वापिसी पर एदी फाउन्डेशन
को 1 करोड रुपये इनाम सहायता राशि देने की जो पेशकश की थी उसे
भी बिलकीस बानो ने यह कहकर लेने से मना कर दी कि उनका संस्थान सरकारी धन इस्तेमाल
नहीं करता।
पर फिर भी हमे शुक्रिया
अदा करना चाहिए एदी फाडन्डेशन का जिसने आज के वेह्शी समाज और पाकिस्तान जैसे
इस्लामिक मुल्क में जहां नारी को पैर की जूती समझा जाता है वहां इस मासूस को छत और
मां-बाप की तरह प्यार दिया। उसकी वतन वापिसी के भावुक क्षण पर एदी फाउन्डेशन की
अध्यक्ष बिलकीस बानो ने भावुक होते हुए कहा हम पाकिस्तान चले जायेगे, पर दिल में इसकी यादें रह जायेगी। लेकिन जिस तरह पूरा देश इसे हाथों-हाथ ले
रहा है, वह एक समाज के तौर पर हमारे संवेदनशील होने का सूचक है।
यह बताता है कि हमें दूसरे के दुख-दर्द
में खुद को शामिल करना आता है। भारत नाम के इस देश का अस्तित्व कागज पर खिंची कुछ
लकीरो में नहीं है यह एक दूसरे के दिल में भी बसता है।
अब यदि हम एक गीता की
वापिसी का जश्न हर रोज मनायें तो हमको यह शोभा नहीं देगा क्यूकि यहां तो हर रोज
सैंकडो गीता गायब होती है जिनका कोई अता-पता नहीं चलता। एक गैर सरकारी स्वयं सेवी
संस्था का मानना है कि दिल्ली व अन्य मेट्रो शहरों से बच्चों को उठाकर भीख मांगने, बालमजदूरी, वेश्यावृत्ति व अन्य गैरकानूनी कामों में लगा दिया जाता है। लापता होनें वाले
इन बच्चों की पारिवारिक पृष्टभूमि पर नजर डाले तो पाएंगे कि गायब होने वाले अधिकांश
बच्चे गरीब परिवार के होते है। देखा जाए तो इनके मां-बाप के बीच मारपीट,लडाई झगड़ा आदि बेहद आम घटना है इससे निजात पाने के लिए भी कई बार बच्चे शुरू में घर से भाग जाते है।
लेकिन उनमें से कुछ तो महीनों बाद लौट भी आते है और कुछ हमेशा के लिए गायब हो जाते
है। दूसरा हमारे देश में बेहद बडे स्तर पर
बच्चों की चोरी हो रही है लेकिन प्रशासन की
ओर से कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जा सका। जिसका परिणाम यह है कि हर साल गुम होते बच्चों की संख्या में इजाफा ही हो
रहा है। समाचार पत्रों के अनुसार इस साल देश में अप्रैल 2015 तक 130 बच्चे प्रतिदिन गायब हुए। कुल मिलाकर 15,988 बच्चे गायब हुए। इनमें 6,981 खोजे नहीं जा सके। देश में हर आठ मिनट में एक
बच्चा लापता हो जाता है। सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि इन गुम होने वाले बच्चों
में लड़कियां 55 फीसदी से ज्यादा है। और 45 फीसदी बच्चें अब तक नहीं मिल पाए है। ये या तो मार दिये गये या भिक्षावृति या
वेश्यावृति के रैकेट में धकेल दिए गये है। कुल गुम हुए बच्चों 3,27,658 है जिनमें 1,81, 011 (गीता) यानि के लड़कियां है। अगर देखा जाये तो भारत में बच्चों की तस्करी के
व्यापार में सामाजिक, आर्थिक कारण ही मुख्य भूमिका निभा रहा है। अशिक्षा, गरीबी, रोजगार का अभाव आदि भी कई बार बच्चों
को बाहर निकलने को मजबूर का देता है या फिर अभिावक उन्हें बाहर भेजते है। लेकिन
उनमें से अधिकतर तस्करों के जाल में फंस जाते है। इस अवैध कारोबार को कडे कानून के
द्वारा रोकने की बात की जाती है पर नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा।
लापता बच्चों का ना
मिलना उन माता-पिता की अंतहीन पीड़ा है उन्हें जीवनपर्यंत अपने बच्चे से अलग हो
जाना पडता है। इसलिए गीता की वापिसी पर सरकार द्वारा कुछ नयें आयामों पर नजर डाली
जाये जो गुमशुदा बच्चों को तलाशने में मददगार हो और इनकी तस्करी पर पैनी नजर रखी
जाए। केन्द्रीय स्तर पर कोई मंत्रालय कोई टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए
जाहिर सी बात है कि उन बच्चों को किसने उठाया? वो कौन लोग है? क्या ममता के टुकडें इसी तरह लापता होते
रहेंगे? आदि सवाल खड़े होते है ।
लेकिन इन सवालों का जबाब मिलना बाकी है! क्योंकि अभी डेढ़ करोड़ से ज्यादा गुमशुदा गीता बाकी है।
राजीव चौधरी
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