पाकिस्तान के समाचार
पत्रों में जिस तरीके से बिहार चुनाव के नतीजे प्रथम पृष्ट पर छपे भारत के एक राजनैतिक दल बीजेपी की हार को
प्रमुखता से छापा और बाद में वहां के आर्मी चीफ व् अन्य राजनेतिक दलों ने ट्वीट
किये ये विदेशी शुभकामनायें भले ही चुनाव जीतने वाले दल के लिए के लिए ख़ुशी का
विषय रहा पर देश के लोगों के लिए जरूर आत्म मंथन का विषय है!! क्योंकि जब-जब भारत
जातिवाद में बटता है भारत कमजोर होता है और उसकी कमजोरी ही दुश्मनों की मजबूती है और
उसका जीता जागता उदहारण है ये विदेशी शुभकामनायें! हमें यह कहना तो नहीं चाहिए था| क्योंकि हम किसी राजनैतिक पार्टी या दल के ध्वज
के मुकाबले भारतीय तिरंगे का सम्मान करना पसंद करते हैं, और चाहते है समस्त भारत जातिवाद और
क्षेत्रवाद के दलदल से बाहर आकर एक सूत्र में पिरोई हुई भारत माता के कंठ की माला
बने| लेकिन दुर्भाग्य से देश फिर जातिवाद और भाषावाद और क्षेत्रवाद की तरफ जा रहा
है!
कहते है, हमेशा किसी
देश का बुद्धिजीवी वर्ग , विद्वान वर्ग,
समाचार पत्र और मीडिया कलम के बल पर देश को एकता अखंडता में बांधते है किन्तु जब
यह बात भारत पर लागू करके देखते हैं तो
नतीजा बड़ा भयानक दिखाई देता हैं| और स्वार्थ की अग्नि में जले लोग भारत की एकता को
जलाते दिख जायेंगे| मुझे ये सब कहना और लिखना तो नहीं चाहिए पर सच के सूरज को झूट
की चादर से नहीं छिपाया जा सकता बिहार चुनाव में बाहरी और बिहारी का मुद्दा बड़ा
उछला मीडिया ने इसे बड़ा रंग दिया क्या बिहार देश का हिस्सा नहीं है जो उसे बाहरी
और बिहारी में बाँट दिया गया ? कैसे एक मीडिया कर्मी बिहार की गलियों में लोगों से
पूछता है आप किस जाति के हो और आप किस पार्टी को वोट करेंगे! क्या यह पत्रकारिता का
ओछा उदहारण नहीं है? पत्रकारों का काम होता हैं लोगों से उनकी समस्याएं, उनके
मौलिक अधिकार, उनकी मौलिक जरूरते, शिक्षा, रोजगार आदि समस्याओं को सार्वजनिक मंचो
पर उठाये, न की उन्हें जातिवाद, भेदभाव, छुआछूत आदि में डुबाये|
सब का मानना है इस
समय इस देश को औधोगिक विकास की आवश्यकता है लेकिन उससे पहले मेरा मानना है इस देश को सामाजिक विकास की
जरूरत है, इसके बाद ही यहाँ आर्थिक और औधोगिक विकास हो सकता है क्योंकि अभी तो यह
देश सामाजिक विकास में ही दिन पर दिन पिछड़ता दिखाई दे रहा है, भारत में चुनाव में जातिवाद के बेहद गाढ़े रंग की बड़ी लंबी दास्तान है। यह प्रकट तौर पर जीत का सबसे बड़ा उपाय है। बात कभी वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, से शुरू हुई थी और अब जाति से जाति को काटने की नौबत आ गई है। हर एक प्रान्त में
चुनाव जाति के आधार पर ही हो रहा है और खुलेआम हो रहा है।
मीडिया इस खेल में खुद शामिल होकर जातिगत वोटों की बन्दर बाँट करता दिख जायेगा,
सबका एक ही
फॉर्मूला है, उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट, जिसके वोट की गारंटी हो। जाति की काट में जाति। ऐसा हाल तब है, जब देश को
विकास की खास दरकार है। मगर यह सब भूल कर देश के लोग अपनी-अपनी जाति को देख रहे
है, चुनाव से पहले लोगों के पास मुद्दे होते है, शिक्षा, स्वास्थ , रोजगार, सड़क,
लेकिन जब वो वोट डालने जाता हैं तो उसके दिमाग में सिर्फ एक चीज रहती है
जाति,जाति,अपनी जाति
अब देश के लोग यह सोच रहे हो कि उन्हें जातिवाद के कुचक्रों से निकलने कोई
अवतार या राजनैतिक दल आएगा तो भूल जाओ! निकलना खुद ही पड़ेगा, अब निकल जाओंगे तो
संभल जाओंगे नहीं तो न जाति बचेगी न देश
बचेगा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
राजीव चौधरी
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