कल परसों हम आजादी की 68 वीं वर्षगांठ मना रहे थे । आजादी के
गीतों से गा रहे थे कि किस तरह हमें
आजादी मिली 125 करोड
भारतीयों के लिये अत्यंत हर्ष, उमंग का
दिन था देश के प्रधानमंत्री का आभार
व्यक्त करता हूँ , कि उन्हौनें लाल किले
की प्राचीर से जातीय-नस्लीय भेद-भाव पर समाज के मन को झझकोरा। पर इस पावन पर्व
पर भी मेरे मन में ये प्रश्न घर किये बैठा
है, कि आखिर देश में जातिवाद, ऊंच नीच का
भेद-भाव क्यूं ? चलो हम मानते है कि समाज को
राजनैतिक आजादी तो मिल गयी पर जातिवाद की मानसिक गुलामी से आजादी पाने के लिये कौन
सी क्रान्ति करनी पडेगी छुआछूत, अप्रस्यता ,छोटी जाति, बडी जाति ये सब अभिशाप तो इस समाज में
अभी भी ज्यों के त्यों खडे है। और ये अभिशाप
जब तक इस देश के अन्दर है तब
तक इस देश का पतन होता रहेगा। इतिहास कहता है कि वैदिक युग की समाप्ती के बाद समाज
में जातिवाद का जहर तीव्र पैमाने पर फैला जो बाद में इस देश के विनाश का कारण बना
इसका मतलब यह कि चलो समाज शास्त्री इस बात को तो मानते है कि वैदिक युग में
जातिवाद जैसी कुप्रथा नही थी अब प्रश्न यह कि जब लोगों को इस बात का पता है तो अब
वैदिक युग अपनाने में क्या परेशानी है, हमने सरकारो से हमेशा जातीय भेद-भाव खत्म करने की बस हूंकार भरी पर
किसी सरकार में इच्छा शक्ति नही देखी यदि होती तो नयी-नयी जातीय योजनाओं का शुभारम्भ
नहीं होता अभी हिसार के भगाना गांव के दलित समाज के कुछ परिवारो के सामाजिक
बहिस्कार के कारण सामूहिक रुप से धर्म परिवर्तन की बात सामने आई दूसरी घटना मथुरा नौहझील क्षेत्र के पारसौली
गांव में वहां पर दलित समुदाय का कुछ
लोगों सामाजिक तिरस्कार किया इन घटनाओं ने एक बार फिर हमारे पढे लिखे समाज
की मानसिकता एक बार प्रश्न चिंह खडा कर दिया कि ये जाति प्रथा के झूठे आइने में खुद
को कितना बडा क्यूं न समझते है? इस तरह के कुकृत्यो पर में इनकी मानसिकता को दलित शोषित, पिछड़ी मानसिकता कह सकता हूं देश भले
ही उठने की कोशिश में हो पर हम अब भी जातिवाद जैसी मानसिक गुलामी के खड्डे में पडे
है आखिर उन 100 परिवारो का कसूर क्या है बस इतना
है कि सामाजिक बटवारे के आधार में वो दलित जाति से है, पर हमनें तो हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को उन लोगों के भी गले मिलते देखा है
जिन्हौनें इस देश की धर्म संस्कृति को
स्त्रियों के चीर, चरित्र को हजारो सालो तक रोंदा और यह लोग तो हजारों सालो तक
जातिगत रुप से खुद को ऊंची जाति से समझने वाले लोगों के पैरो तले पददलित होकर भी इनके साथ धर्म युद्ध में डटे रहे अब आज भी इनसे धृणा करते है इनकी
अवहेलना, इनका सामाजिक तिरस्कार बहिस्कार करते
है फिर धर्म परिवर्तन का शोर मचाते है जब
तुम उन लोंगों को गले लगा सकते हो तो फिर इन अपनो को क्यूं नहीं इनसे कैसी नफरत? में सरकारो से एक बात पूछना चाहता हूँ जो पददलित
समाज शताब्दियो तक जातिवादी अन्याय अपमान के साथ
अपने ही भूभाग पर प्रताडित हो रही हो क्या अब उसे सम्मान पूर्वक जीने का हक नहीं है, अब उसे गले लगाये जाने की जरुरत नहीं है, यदि नहीं तो धर्मपरिवर्तन पर रोना चिल्लाना छोड दो कहते है पांच हजार लीटर की पानी की टंकी भी
छोटे-छोटे छिद्रो से रिक्त हो जाती है और इस हिन्दू समाज में तो अंसख्य जातिवाद के छेद है यदि छेद नहीं भरे गये
तो धर्म और देश खोखला हो जायेगा आर्य समाज
हमेशा से ये जातिवाद जैसी कुप्रथाओं का खंडन मडंन करता आया है यही कारण था जो पंडित
मदन मोहन मालवीय जी को ये कहने को विवष होना पडा था- कि जिस दिन आर्य समाज सो जायेगा उस दिन हिन्दू धर्म का पतन हो जायेगा।
जाति एक भ्रम है, यह एक दंभ है, यह मानसिक दासता है, यह एक मिथक है, अंधविश्वास है, अभी भी समय है इस जाति शब्द को चेतना बनाकर हृदय से
लगा लो ताकि ये भौतिक शक्ति बनकर देश धर्म दोनो को एक नई उचाई पर पंहुचा सके जातीय भेद-भाव किसी भी समाज के माथे पर कलंक होता है और यदि अब भी ये घटना होती
है तो में समझता हूँ ये देश धर्म के
खतरनाक साबित होगा......राजीव चौधरी
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