देश की महान वैदिक सभ्यता में नारी को पूजनीय होने
के साथ-साथ माता जैसे पवित्र उद्बोधन से संबोधित किया गया है और छोटी
बच्चियों को कन्या जैसे शब्दों से सुषोभित कर लोक परम्पराओं, उत्सवों व ग्रह प्रवेश, यज्ञ इत्यादि में इन्हीं छोटी-छोटी बच्चियों को पूजनीय
मानकर सबसे पहले भोजन कराया जाता है और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि वैदिक
सभ्यता के अलावा दूसरी कोई भी संस्कृति या सभ्यता नारी के किसी भी रूप को इतना मान
नहीं देती जितना कि वैदिक आर्य संस्कृति समाज देता है। किन्तु हम जब इस संस्कृति पर हमला होते
देखते हैं तब मन की पीड़ा विरोधी बनकर समाज को जगाने के लिए बेचैन हो उठती है।
विगत महीने प्रधानमंत्री जी ने जब बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा दिया तो मन बड़ा प्रफुल्लित हुआ कि चलो आर्य
समाज की आवाज में किसी ने तो स्वर से स्वर मिलाया। किन्तु जब कुछ दिन पीछे जब ये
खबर पढ़ी कि अभद्रता के चलते उत्तर प्रदेश में लगभग चार सौ बच्चियों ने स्कूल जाना
बंद कर दिया, तो मन द्रवित हो उठा बात कुछ यूं है कि उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के एक गांव
की कुछ बच्चियां नदी पार कर स्कूल जाती है
जब नाव नहीं होती तो मासूम अबोध बच्चियां तख्तों के सहारे नदी को पार करती
है उसी समय कुछ आवारा लड़के नदी में आकर नहाते है अश्लील हरकतें व भद्दे इशारे कर
इन्हें गालियां तक देते, लेकिन जब इन बच्चियों ने इसका विरोध किया तो वो दरिंदे इन
बच्चियों के साथ मार-पीट पर उतर आये जिसके चलते डरी सहमी ये मासूम बच्चियों ने
स्कूल जाना ही बंद कर दिया| एक तो गरमी-बरसात में अपने भारी भरकम बस्ते बचाते हुए नदी पार कर स्कूल जाना
दूसरा रोज छेड़खानी का शिकार होना और बच्चियां भी इतनी छोटी कि वो ठीक ढंग से बता
भी नहीं पा रही हैं अंदाजा लगाना कठिन है कि छेडछाड की हरकत कैसी होगी क्योंकि खुद
पुलिस अधिकारी भी बताने में शर्म महसूस कर रहे है अब आप समझ सकते है की घटना कैसी
होगी ! अक्सर कुछ ऐसे ही कारणो से लडकियां स्कूल जाना बंद कर देती है या परिवार के
लोग ही जाने नहीं देते लेकिन सबसे बडी बात इस मामलें में ये देखने को मिली महिला
आयोग की उपाध्यक्ष ही उल्टा बच्चियों को डाटनें लगी और वो लडकियां खामोश है कि आखिर माजरा क्या है वे इस छेड़छाड़ का शिकार
क्यों हो रहीं हैं! यदि हम इस व्यवहार को पशुवत व्यवहार कहें तो शायद पशु का भी अपमान होगा क्योंकि ऐसी शर्मनाक हरकतें तो
पशु भी नहीं करते। आखिर मनुष्य के रूप ये दरिंदे हैं कौन जो प्रशासन इन्हें बचाने
में लगा हुआ है! बस इतना कि वे एक विषेश सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। एक और तो उत्तर
प्रदेश सरकार आसाराम के गवाह की मौत होने पर सीबीआई जांच के आदेश तक दे देती है दूसरी
और वो इस मामले पर चुप्पी साधे क्यों बैठी है? और जब स्थानीय साधू संतो ने इस मामले के खिलाफ आवाज उठाई तो वही प्रशासन धारा १४४
लगा देता है हमें इस मामले में संवेदना नहीं विरोध करना चाहिये क्योंकि
मामला मासूम बेटियों का है और मेरा आह्वान समस्त महिला समाज से है कि इस मामले को सार्वजनिक मंचों पर उठाकर
उन बच्चियों को न्याय दिलाया जाए। भारत के राजनेता और अभिनेता एक आतंकी को मासूम
कहकर बचाने के लिये राष्ट्रपति को ज्ञापन सोपने निकल पड़ते है किन्तु जब कोई ऐसा सवेदंशील
मामला आता है तो ये मौन हो जाते हैं क्या वह आतंकवादी याकूब मैनन इन बच्चियों से
भी ज्यादा मासूम है जो सरकार इस पर कार्यवाही करने के बजाय मौन धारण करना ज्यादा
पसंद करती है। आमतौर पर ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी बच्चियों को विरोध करना नहीं
सिखाया जाता था जिस कारण वो अपने साथ होते
गलत व्यवहार पर चुप रह जाती थीं और मानसिक व शारीरिक यातना का शिकार होती रहती थीं,, यदि कोई विरोध करती भी थी तो उसे चरित्रहीन समझा जाता था किन्तु आज ऐसा नहीं
है आज विरोध को न्याय मिलता है खैर इन बच्च्यिों की हिम्मत की दाद देनी पडेगी कि
इन्हौने प्रसंशा का काम किया
राजीव चौधरी
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