जावेद अख्तर ने
भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह हो हराने के लिए मुसलमानों से कन्हैया कुमार के
एकजुट होकर वोट करने को कहा हैं। देखा जाये तो एक समय हिंदी भाषी
राज्यों में अपनी मजबूत पकड़ और संसदीय उपलब्धियां रखने वाले वामपंथी दल और उनकी
विचारधारा आज सिमट कर सिर्फ बिहार की बेगुसराय सीट तक सीमित हो चुकी है। अगर
बेगूसराय से कन्हैया कुमार किसी कारण जीत जाते है तो वामपंथ की राजनीति को कुछ समय
के लिए जीवन मिल सकता है, हालाँकि
संभावना कम है। इसी कारण कई पत्रकारों से लेकर तमाम छोटे बड़े वामपंथी नेता और
सेकुलरवाद की आड़ में इस्लामवाद परोसने वाले कई अभिनेता आज इस चुनाव में अपने युवा
सितारे के कंधे पर सवार होकर अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ते हुए बेगूसराय की गलियों
में वोट मांगते दिख जायेंगे।
पिछले दिनों जेएनयू
छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने देशद्रोह के केस में जेल से जमानत पर
रिहा होने के बाद कहा था कि मुझे जेल में दो कटोरे मिले। एक का
रंग नीला था और दूसरे का रंग लाल था। मैं उस कटोरे को देखकर बार-बार ये सोच
रहा था कि इस देश में कुछ अच्छा होने वाला है कि एक साथ लाल और नीला कटोरा है वो
नीला कटोरा मुझे आंबेडकर मूवमेंट लग रहा था और वो लाल कटोरा मुझे वामपंथी मूवमेंट
लग रहा था। लेकिन कन्हैया कुमार इसमें वह एक तीसरे कटोरे का जिक्र करना भूल गये
जो हरा कटोरा बेगुसराय सीट से चुनाव लड़ रहे वामपंथी दलों के साझा उम्मीदवार
कन्हैया कुमार के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे जावेद अख्तर के जाने के बाद दिखा।
ये सच है
कन्हैया कुमार की बेगुसराय सीट से हार माओवाद, लेनिन और मार्क्सवाद की भारत में अंतिम कब्रगाह साबित होगी। क्योंकि
पिछले अनेकों वर्षों से धर्म को अफीम बता-बताकर मार्क्सवाद का धतूरा गरीब जनता को
खिलाकर जिस तरह देश माओवादी, नक्सली
खड़े कर देश में अनेकों नरसंहार किये है यह हार उनकी इस विचारधारा के ताबूत की
अंतिम कील साबित होगी।
देश के कई
राज्यों में अनेकों वर्षों तक नक्सलवाद के नाम पर हिंसा मार्क्सवाद के नाम पर
सत्ता सुख भोगने वाले वामपंथी नेताओं को आज अपनी विचारधारा के लिए राष्ट्रीय
राजनीति ने कोई जगह दिखाई नहीं दे रही है शायद यही वजह रही होगी कि कन्हैया कुमार
ने जेल से निकलने के बाद बिहार तक पहुंचते हुए अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा का
इजहार कर दिया था। कन्हैया कुमार ने आजादी, जय भीम और प्रसिद्ध लाल सलाम’ के नारे के साथ वामपंथी राजनीति को नए दौर में नए सिरे से गढ़ने की
कोशिश की थी।
जो लोग आज इसे
सिर्फ राजनितिक नारा समझ रहे है उन्हें यह सब नारे से आगे समझना होगा कि आज आजादी
किसका नारा है और लाल सलाम किसका?
क्योंकि जिस तरह दलितों को हिन्दू समाज में बाँटने का काम हो रहा है
और जावेद अख्तर सरीखे चेहरे बेगुसराय पहुँचकर कन्हैया कुमार के मुस्लिमों के वोट
मांग रहे है कहीं ये देश पर शुरूआती वैचारिक आक्रमण तो नहीं है?
आज लोगों को एक
बार वामपंथ का इतिहास भी देख लेना चाहिए इसके बाद उनका निष्कर्ष उन्हें जरुर एक
क्रूर सच की तरफ ले जायेगा। बताया जाता है वामपंथ की विचाधारा को लेकर
आधुनिक चीन की नींव रखने वाले माओ त्से तुंग यानि माओ की सनक ने 4.5 करोड़ अपने
लोगों का रक्त बहाया था। रूस में स्टालिन के 31 साल के शासन में लगभग 2 करोड़ से अधिक लोग
मारे गए। यही नहीं बताया जाता है कि इथियोपिया के कम्युनिस्ट वामपंथी तानाशाह
से अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लाल सलाम अभियान छेड़ा। 1977 से
1978 के बीच ही उसने करीब 5,00,000 लाख लोगों की हत्या करवाई। एक
किस्म से देखा जाये तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्टालिन से लेकर माओ या फिर अभी
तक मार्क्सवाद के नाम पर अपराध और लूट हत्या हिंसा की इन लोगों द्वारा ऐसी भीषण परियोजनाएं
चलाई कि जिनका जिक्र किसी आम इन्सान को शर्मिदा कर सकता हैं।
आज वामपंथियों
को समझना होगा कि विश्व के लगभग सभी देशों से मार्क्सवाद की विचारधारा का अंत हो
चुका है? कहा जाता है सोवियत रूस का पहला वाला
अस्तित्व आज नहीं बचा जहाँ मार्क्सवाद का पहला प्रयोग किया था इसी विचारधारा के
कारण वह ढह चूका है। पूर्वी यूरोप के कई देश धूल में मिल गए कुछ तो गायब हो गए जहां
वामपंथी शासन व्यवस्था थी. पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया जैसे देश नक्शे में नहीं मिलते हंगरी-पोलैंड से भी यह
विचारधारा आई गई हो चुकी है। एशिया में चीन का मार्क्सवाद अब
बाजारवाद से गले मिलता दिख रहा है भारत में मार्क्सवाद बंगाल और त्रिपुरा नकार
चुके है और केरल में वामपंथी आज संघर्ष सिमटता दिखाई दे रहा है।
छतीसगढ़ झारखण्ड
और बंगाल को तीसरे दिन दहलाने वाले नक्सलवादी एक-एक कर आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा के
जीवन की ओर लौट रहे है। अब जो यह ताजा बिहार का बेगूसराय चुनावी मैदान है यह वामपंथियों की
अवसरवादी राजनीति की सवारी है किसी तरह संसद में छलांग लगा कर विचारधारा को जीवित
करने की चेष्ठा है इसमें मनुवाद को गाली देते हुए मेकअप में सजे कथित
बुद्धिजीवियों की कतार है. सेकुलरवाद का ढोंग है। आंबेडकर
जी के नाम पर दलितों को सुनहरा सपना बेचने का प्रयास है। जो लोग
इसे समाजवाद से जोड़कर देख रहे है या भय भूख की आजादी नाम पर भविष्य के सपने संजोये
है, उन्हें बाद में वही मिलेगा जो 35 साल बंगाल में सत्ता में रहने पर बंगाल के
लोगों को मिला है।
राजीव चौधरी
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