हाल ही में योगेंद्र
यादव ने इंडिया टुडे टीवी पर भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय के साथ साध्वी प्रज्ञा
सिंह की उम्मीदवारी पर एक बहस में अपनी पारिवारिक कहानी साझा की. योगेंद्र यादव ने
अपने दादा की हत्या एक दुखद किस्सा बताते हुए कहा कि उनके दादा हत्या उनके पिता की
उपस्थिति में एक मुस्लिम भीड़ ने कर दी थी इसके बाद उनके पिताजी ने बच्चों को
मुस्लिम नाम दिए यानि बच्चों के अरबी भाषा में रखे. वो योगेन्द्र को सलीम और
योगेन्द्र यादव की बहन नीलम को 'नजमा' कहकर
पुकारते थे.
योगेन्द्र यादव
देश के एक समाज शास्त्री और चुनाव विश्लेषक के साथ आम आदमी पार्टी के संस्थापक
सदस्यों में एक रहे है और आम आदमी पार्टी से निकाले जाने के बाद योगेंद्र यादव और जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने नई पार्टी 'स्वराज
इंडिया पार्टी' इंडिया बनाई थी. देखा जाये तो योगेन्द्र यादव
जो अपनी धर्मनिरपेक्षता का किस्सा सुना रहे थे वह कोई वोट की राजनीति का हिस्सा
नहीं बल्कि आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की एक बीमारी है और इस बीमारी का जन्म 90 के दसक
में हुआ था.
कहा जा रहा है
कि योगेन्द्र यादव जी ने इस किस्से को देश की धर्मनिरपेक्षता से जोड़ते हुए भाजपा
प्रवक्ता अमित मालवीय जी पर साम्प्रदायिकता का आरोप जड़ते हुए उन्हें चुप करा दिया.
एक कहावत है अगर मुझे डर लग रहा है तो मैं चैकन्ना और पडोसी को डर लगे तो वह डरपोक
असल में योगेन्द्र यादव जी अपनी जिस पारिवारिक धर्मनिरपेक्षता का किस्सा सुना रहे
थे उसमें मुझे कहीं भी धर्मनिरपेक्षता दिखाई नहीं दी हाँ मन में सवाल जरुर खड़े हो
रहे है कि आखिर योगेन्द्र यादव जी असल कहना क्या चाह रहे थे.
यही कि उस
मुस्लिम भीड़ द्वारा उनके दादा की हत्या करना कोई गुनाह नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा
महान और पुन्य कार्य था कि हत्या से उनके पिताजी इतने प्रेरित और आत्मप्रसन्न हुए
कि उन्होंने सोचा क्यों ना बच्चों को भी ऐसा ही बनाया जाये और उनके नाम मुस्लिम
शब्द कोष से उठाकर रख दिए थे.
क्योंकि दुनिया
में अगर नाम बच्चों के नाम रखने के लिहाज से देखें तो अक्सर लोग अपने बच्चों के नाम
प्रेरणा लेकर रखते है और वो ही नाम रखना पसंद करते है जिसका कुछ अर्थ हमारे धर्म
संस्कृति, सभ्यता वीरता से जुड़ा हो या फिर वो जो विशाल व्यक्तिव्य महान आत्मा या
महापुरुष रहे हो. जैसे आज सरदार भगतसिंह जी के नाम पर बहुत सारे
नाम भगत सिंह मिल जायेंगे या फिर कुछ लोगों के नाम के आगे राम होता तो कुछ नाम में
राम शब्द बाद में आता है जैसे दयाराम रामकुमार, राम
किशोर ऐसा ही श्रीकृष्ण जी के नाम में देख सकते हैं. कृष्णपाल कृष्णवीर आदि
दूसरा सवाल
अच्छा जब योगेन्द्र यादव जी का नाम सलीम और उनकी बहन यानि नीलम जी का नाम नजमा रख
ही दिया था फिर योगेन्द्र यादव वो कारण भी बताते जिसके बाद फिर उनका नाम सलीम से
योगेन्द्र हुआ. और नजमा का नीलम? क्या योगेन्द्र यादव जी बता सकते है कि
मार्च 2016 में दिल्ली के विकासपुरी में एक डेंटिस्ट डॉक्टर पंकज नारंग की कुछ
मुस्लिम लोगों द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी थी क्या एक बेकसूर, बेवजह
जान गंवा देने वाले डॉक्टर की पत्नी भी अपने बच्चों के नाम मुस्लिम रख लें?
गुरमेहर कौर
का नाम भी आपने सुना होगा करगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन मनदीप सिंह की
बेटी हैं. जो हाथ में एक तख्ती पर लिखकर सामने आई थी कि पाकिस्तान ने मेरे पिता को
नहीं मारा, उन्हें जंग ने मारा है. असल
में दोस्तों धर्मनिरपेक्षता कोई बुरी चीज नहीं है इसका अर्थ होता है मैं अपने धर्म
में विश्वास के साथ अन्य सभी धर्म मजहब पंथ को सम्मान देता हूँ पर मेरी अपनी आस्था
अपने महापुरुषों अपने धर्म में अडिग है. किन्तु भारत में वामपंथियों के द्वारा
इसकी परिभाषा को बदल दिया गया और नई परिभाषा यह खड़ी कर दी कि अपने धर्म को अपशब्द
और दूसरे को सही कहना ही जैसे सच्ची धर्मनिरपेक्षता हो?
यह सिर्फ वोट की
राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की एक बीमारी है और इस बीमारी
का जन्म 90 के दशक में हुआ था. आज आपको योगेन्द्र यादव जैसे अनेकों पत्रकार,
नेता और अभिनेता
धर्मनिरपेक्षता की इस बीमारी से ग्रसित दिखाई देंगे.
साल 2007
में प्रमुख वामपंथी सी गुवेरा के पुत्र कैमिलो ने भी घोषणा थी कि केवल
मार्क्सवादियों और इस्लामवादियों का गठबन्धन ही संयुक्त राज्य अमेरिका को नष्ट कर
दुनिया पर राज कर सकता हैं. कुछ वामपंथी तो और आगे बढ़ गये और इस्लाम में
धर्मांतरित तक हो गये. जर्मनी के गीतकार कार्लेंज स्टाकहावसन ने 11
सितम्बर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की घटना जिसमें करीब 3000 अमेरिकी
लोगों की मौत हुई थी इस घटना को ‘समस्त विश्व के लिये महानतम कार्य’ की संज्ञा दी
थी.
दरअसल
वामपंथियों की पूंजीवाद में संकट की प्रतीक्षा बेकार गयी, पतन का
कम्युनिष्ट आन्दोलन झुककर मोलवियों के खेमे में चला गया. क्योंकि इस्लाम में एक
बड़ा वर्ग मौलिक सुविधाओं से दूर, गरीबी, भूख की
जिन्दगी बसर कर रहा था. जिन लोगों को वामपंथी कभी समाजवाद के लिए इक्कठा नहीं कर
पाए उन लोगों को मौलवी द्वारा इस्लामवाद के नाम पर खड़ा कर लिया गया.
इसी का नतीजा है
कि प्रसिद्ध वामपंथी और सीपीआई नेता कविता कृष्णन ने कश्मीर में पत्थरबाजों को क्लीन
चिट देते हुए कहा था कि कश्मीर में अलगाववादी और आतंकी पाकिस्तान पैदा नहीं करता
बल्कि भारतीय सेना पैदा करती है. यही नहीं इससे कई कदम आगे बढ़ते हुए
अरुंधती राय ने तो यहाँ तक कहा था कि कश्मीर में भारतीय सेना का आक्रमण शर्मनाक है.
इस तरह के बयान
यही दर्शाते है कि वामपंथी विचारधारा विश्व के सभी कोनो में धर्मनिरपेक्षता की आड़
में इस्लामवाद को प्रोत्साहित कर रही है हिंसात्मक विचारों और कार्यों को संवेदना
मासूमियत और धर्मनिरपेक्षता का आवरण दे रही है. जिससे यह गठबंधन अपनी उर्जा लेकर
पल्लवित पोषित हो रहा है.
ऐसे में आम आदमी
पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकरणी के सदस्य रहे हैं राजनीतिक विश्लेषक कहे जाने
वाले व स्वराज इंडिया पार्टी के संस्थापक योगेन्द्र यादव की दुखद कहानी भले ही
वामपंथियों के लिए संवेदना और मीडिया के लिए खबर हो पर योगेन्द्र यादव जी को इन
सवालों के जवाब जरुर देने चाहिए कि आखिर उस भीड़ ने ऐसा कौनसा महान कार्य किया था
जिससे उनके पिताजी ने प्रसन्न होकर बच्चों के नाम मुस्लिम रख दिए थे..?
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