दिक्कत तब नहीं होती जब सरकार किसी गरीब की मदद के लिए कार्य करती है बल्कि
दिक्कत तब पैदा होती है जब सरकार जनता से उनका धर्म-मजहब पूछ-पूछकर मदद का कार्य
करती है। बरसों पहले इसे राजनितिक हथकंडा कहा जाता था लेकिन अब इसे राजनितिक चलन
मान लिया गया है। दरअसल गरीब तो गरीब होता है यदि उसमें कोई धर्म-मजहब, मत-सम्प्रदाय का भेद कर उसकी सहायता
करता है तो यहां उसकी मानसिकता पर सवाल जरूर खड़ा होता है। ऐसा ही एक सवाल हाल ही
में राष्ट्र निर्माण पार्टी के अध्यक्ष ठाकुर विक्रम सिंह ने मोदी सरकार की प्रचार
सामग्री पर उठाया है। वह कहते हैं कि आईटीओ के पास से लेकर दिल्ली के हर जगह ऐेसी सूचना के बोर्ड
लगे हुये हैं। इन बोर्डो में दिखाया गया है कि मुस्लिम आबादी की हैसियत
बढ़ाने के लिए, मुसलमान
युवकों को रोजगार देने के लिए मोदी सरकार कितनी कटिबद्ध है, मुस्लिम कामगारों को ब्याज मुक्त कर्ज
दिया जा रहा है, आई.ए.एस.
की तैयारी करने वाले मुस्लिम छात्रों को एक-एक लाख रूपये दिये जा रहे हैं, वह भी अनुदान स्वरूप। इस प्रकार यदि आप मुस्लिम हैं तो आई.ए.एस. की तैयारी के
नाम पर भारत सरकार से एक लाख रूपये हड़प सकते हैं।
चित्र साभार गूगल |
राष्ट्र निर्माण पार्टी के अनुसार इस विज्ञापन से प्रेरित होकर कुछ
स्कूल-कॉलेजों के लड़के-लड़कियां अपना धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। उनसे पूछने पर उनका
तर्क था कि हमें धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम या अल्पसंख्यक बनने से व्यापार, कारोबार के लिए मुफ्त में बिना ब्याज
के लोन मिल जाएगा अथवा आई.ए.एस. की पढ़ाई करते हैं तो 1 लाख रूपए का अनुदान मोदी सरकार द्वारा
मुफ्त मिलेगा। हिन्दू बने रहने से तो हमें बस सरकार की गालियां, पुलिस की लाठियां व नौकरियों के लिए
धक्के खाने के सिवाए कुछ नहीं मिलना है।
असल में गरीबी को अनदेखी कर मजहबी रूप से सहायता का ये कथित विकास कार्य
कोई नया नहीं है। बल्कि अलग-अलग सरकारों द्वारा ये कार्य व्यापक रूप से होता आया
है। साल 2013 उत्तर
प्रदेश में जब सपा सरकार थी उस समय भी यह एकतरफा न्याय देखने को मिला था। तब खुद
को समाजवादी कहने वाली अखिलेश सरकार ने यह साफ कर दिया था कि मुस्लिम लड़कियों की
तरह निर्धन हिन्दू लड़कियों को अनुदान देने की कोई योजना उनके पास नहीं हैं। ज्ञात
हो कि समाजवादी सरकार में ‘‘हमारी
बेटी उसका कल’’ योजना के
तहत मुस्लिम लड़कियों को तीस हजार रुपये का अनुदान उच्च शिक्षा के तहत दिया जा रहा
था जबकि मुस्लिम लड़कियों की तरह निर्धन हिन्दू या अन्य वर्ग की लड़कियों को अनुदान
देने की कोई योजना उनके खाते में नहीं थी।
इसी के देखा-देखी उसी दौरान कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने
मुस्लिम समुदाय के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी जिनमें मुस्लिम लड़कियों के विवाह
में 50,000 रुपये का
अनुदान देने की ‘‘शादी
भाग्य’’ जैसी
योजना इन्हीं में से एक थी। बात सिर्फ शादी तक ही सीमित नहीं थी बल्कि राजनीति का
तुष्टीकरण देखिये कि नौवीं और 10वीं कक्षा
में पढ़ाई करने वाली मुस्लिम बच्चियों को 10 हजार रुपये की राशि प्रदान करने के साथ
11वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ाई करने वाली मुस्लिम
लड़कियों को 12 हजार
रुपये की छात्रवृत्ति सरकार दे रही थी।
एक तरफ कहा जाता है बेटियां तो सबकी सांझी होती हैं। चाहे उसमें गरीब दलित
या कथित उच्च वर्ग की बेटी हो या फिर किसी गरीब मुस्लिम वर्ग की। लेकिन उसी दौरान
राजस्थान में अशोक गहलोत ने चुनाव नजदीक देखते हुए मुस्लिम लडकियों को स्कूटी देने
का वादा कर दिया था। यही नहीं 2017 में सत्ता
में आने के बाद अल्पसंख्यकों के कल्याण के नाम पर यूपी में मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने ‘‘सद्भावना
मंडप’’ नाम से
योजना शुरू की जिसमें मुस्लिमों में लड़के वालों की तरफ से लड़की वालों को दी जाने
वाली मेहर की रकम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वहन करने की घोषणा की थी।
अब इस कड़ी में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अल्पसंख्यकों के नाम पर
मुस्लिमां को दिल खोलकर बैंकों से लोन दिला कर आर्थिक तौर पर मजबूती देने की
तैयारी में है। इसके लिए जिलों में खास हिदायत दी जा रही है। रमजान के महीने में
मस्जिदों में डिस्प्ले लगाकर नमाजियों को जिले के अधिकारी इसकी जानकारी दे रहे
हैं। मुस्लिमों को लोन हासिल करने के लिए मैसेज भी भेजने का प्लान तैयार किया गया
है। मुस्लिम महिलाओं को ई-रिक्शा के लिए आसानी से लोन देने की भी योजना भी इसी
राजनीति का हिस्सा है।
लोगों का मानना है कि उपचुनावों में लगातार हार, बलात्कार की बढ़ती घटनाओं और दलितों पर
हमलों की खबरों के बीच मोदी सरकार की छवि को खासा धब्बा लगा है। इस सबसे मोदी
सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी साल में ऐसा दिखाना चाहती है कि उसने अपने शासन में
सिर्फ गायों की रक्षा नहीं की, बल्कि उसे
अल्पसंख्यक मुस्लिमों की भी चिंता है।
केंद्र सरकार ने मुस्लिम लड़कियों को 51 हजार रूपये शादी का शगुन देने का फैसला
किया है। देश में मुस्लिम लड़कियों को उच्च शिक्षा के मकसद से प्रोत्साहित करने के
लिए केंद्र सरकार उन मुस्लिम लड़कियों को 51,000 रुपए की राशि बतौर ‘शादी शगुन’ देगी जो स्नातक की पढ़ाई पूरी करेंगी।
इसके अलावा यह भी फैसला किया गया कि अब नौंवी और 10वीं कक्षा में पढ़ाई करने वाली मुस्लिम
बच्चियों को 10 हजार रुपए
की राशि प्रदान की जाएगी। दरअसल, केंद्र
सरकार 2019 में फतह
हासिल करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। वह अल्पसंख्यकों को साधने में भी कोई
कसर नहीं छोड़ना चाहती। लेकिन वह इसमें भूल रही है कि इस तरह उनका ‘सबका साथ सबके विकास’ का नारा धूमिल हो रहा है। क्योंकि
गरीबी धर्म-मजहब को ध्यान में रखकर किसी के घर नहीं घुसती, लोकतंत्र के अस्तित्व और विकास के लिए
यह जरूरी है कि लड़ाई गरीबी, अशिक्षा, बीमारी और पिछड़ेपन के आधार पर लड़ी जाये
न कि धार्मिक आधार पर। देश की गरीबी और कंगाली का समाधान धार्मिक रूप से करने के
बजाय सामाजिक रूप से किया जाये। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
-राजीव चौधरी
Nice
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