शनिवार का अखबार
हिंसा, आगजनी और खून से लतपथ खबरों से भरा था. उपद्रव एक कथित धार्मिक बाबा
राम रहीम के उसी आश्रम से जुडी एक साध्वी से रेप केस में दोषी करार दिए जाने के
बाद उसके भक्तो द्वारा किया गया. इस हिंसा में करीब 38 लोगों की जान गयी, 200
से ज्यादा घायल हुए और हजारों गिरफ्तार भी किये गये. बहराल कोर्ट द्वारा
रामरहीम पर कोई रहम नहीं किया गया उसे 10 वर्ष कैद और 65 हजार रूपये जुर्माने की
सजा सुनाई गयी.
जलती सरकारी
सम्पत्ति से उठते धुए के गुब्बार से ऊँचा यह सवाल भी कि आखिर इन सबका जिम्मेदार
कौन? अब
सोचिये! किसी महिला का बलात्कार हुआ तो आप किसके लिए सड़क पर उतरेंगे? बलात्कारी
के लिए या जिसका बालात्कार हुआ हो उसके लिए? लेकिन
यहाँ सब उल्टा दिख रहा है. जैसे ही डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को
पंचकुला की विशेष अदालत ने रेप के मामले में दोषी करार दिया. इसके बाद डेरे के
समर्थकों ने हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिए. हिंसा सिर्फ हरियाणा तक ही सीमित नहीं है
बल्कि पंजाब के कई जिलों अलावा चार राज्यों में हिंसा तोड़फोड़ हुई है.
हम राजनीति में
नहीं जाना चाहते न उसके कारण जानना चाहते लेकिन यह तो जान सकते है कि आख़िर क्या
वजह है कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में अदालत द्वारा दोषी करार देने के बाद भी
समर्थक यह मानने को तैयार नहीं होते कि उनके गुरु ने कुछ गलत किया है? चंद्रास्वामी,
आसाराम बापू, नित्यानंद स्वामी, रामपाल
अब रामरहीम गुरमीत इन तथाकथित बाबाओं पर शर्मनाक अपराधो के दोष सिद्ध होने के बाद
भी इनके अंधभक्त यह मनाने को तैयार नहीं की दोषी बाबाओं ने कोई अपराध किया है.
इसके कई कारण है
एक तो बाबाओं उनके आश्रमों पर लोगों की जो आस्था होती है, वह
विचारधारा में बदल जाती है. उन्हें लगता है कि हम जो कर रहे हैं, सच्चाई
के लिए कर रहे हैं. दूसरा लोगों को लगता है कि उनके बाबा पर जो आरोप लगे हैं,
वे सिर्फ बाबा के ख़िलाफ नहीं बल्कि हमारे समाज पर लगे हैं. और इन
आरोपों से अपने समाज, अपने डेरे को बचाना है. दूसरा लोग खुद को
धार्मिक और अपने बाबाओं को चमत्कारी, शक्तिशाली दुःख-सुख हरने वाला अपनी सभी
परेशानी को जड़ से मिटाने वाला समझ लेते है. ये अंधभक्ति इतनी चरम पर होती है कि
लोग अपनी सोचने समझने वाली शक्ति इन बाबाओं के हवाले तक कर देते है.
तीसरा हमारे
सामाजिक जीवन में सुख दुःख आदि आते जाते रहते है कई बार जब लोगों की समस्याएं सही
ढंग से हल नहीं होतीं या उनकी आशा के अनुरूप हल नहीं होता तो वे धार्मिक या
आध्यात्मिक रास्ता अपनाने लगते हैं. हैरानी की बात है कि वे बाबाओं से इन समस्याओं
को हल करवाने जाते हैं. उन्हें लगता है कि यही एक रास्ता है और उनका बाबा कोई
मसीहा है. आश्रमों और डेरो में मुफ्त भोजन और स्वर्ग जाने के आशीर्वाद की लालसा भी
लोगों को इन बाबाओं की ओर खींच लाती है. एक किस्म से भोले-भाले लोगों के बीच
चुपचाप अपराधियों तक को शरण देने का कार्य किया जाता है.
चूँकि ऐसे
मामलों को लोग धर्म से जुडा महसूस करते है जबकि इनका धर्म से दूर-दूर का कोई
वास्ता नहीं होता लेकिन फिर भी एक दुसरे को धर्म से जुडा होना दिखावा या अपने आसपास
के समाज को यह दिखाने की होड़ सी लगी रहती है कि देखो में फला बाबा से जुडा या जुडी
हूँ हम बड़े धार्मिक है फला जगह के सत्संग कर आये है एक किस्म से कहा जाये इन
चर्चाओं से अपनी-अपनी धार्मिक संतोष की भावना को मजबुत करते है. जब कोई कानून या
समाज इनकी इस कथित धार्मिक संतोष की भावना पर प्रश्न खड़ा करता है तो यह लोग उग्र
होकर इन हिंसक कार्यों को अंजाम देने से नहीं हिचकते. उन्हें लगता है कि वे तो
गलती कर ही नहीं सकते.
लेकिन पंचकुला
की घटना के बाद एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या देश सुरक्षित है? क्या
देश को दिशा निर्देश देने वाले कुछ तथाकथित आडंबरी लोग हैं, जो भारत
राष्ट्र के सीधे साधे लोगों को कहीं ना कहीं दिग्भ्रमित कर राष्ट्र की आर्थिक वह जनहानि
करते जा रहे है? यह घटना भारत में एक विशेष समुदाय में ना होकर
हिंदुस्तान में सभी संप्रदाय में हावी होती जा रही है. आज जो लोग देश को आर्थिक
दृष्टि से मजबूत करते हैं या वह देश का भविष्य है वह आंखें मूंदकर ऐसे आडंबरी
लोगों पर विश्वास कर देशद्रोही हरकतों में उनका साथ दे रहे हैं. आज हम गर्व से
कहते है हम सुरक्षित हैं लेकिन जिस तरह की स्थितियां देश में प्रभावी हो रही है
क्या कल के दिन इन तथाकथित आडंबरों के अनुयाई होने के बाद हम अपना और अपनी आने
वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं?
हमारा अंतिम प्रश्न राष्ट्र के सभी लोगों से है
जब कोई बाबा एक फतवा या आदेश जारी करता है तो लोग उसका अनुपालन तुरंत करते अपने
जीवन की कमाई गई पूरी पूंजी को दांव में लगा देते हैं. क्या उन तथाकथित आडंबरी
लोगों द्वारा हमारा भला हो रहा है केवल हिंसा, आगजनी सरकारी व निजी सम्पत्ति और आर्थिक
हानि के अलावा कुछ मिला हो तो समीक्षा करें अगर नहीं. तो जरुर सोचे बेवकूफ कौन?
राजीव चौधरी
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