पिछले डेढ़ दो महीने से लेकर अभी तक हर रोज सुबह समाचार पत्रों में चीन की
धमकी भरी एक खबर जरुर होती है। हो भी क्यों ना! क्योंकि 16 जून 2017 को जब चीनी सैनिक, चुंबी घाटी के दक्षिण में स्थित उसी
विवादित डोकलाम इलाके में घुस आए तब भारत ने वह किया जो उसने 1950 में नहीं किया था। लेकिन 67 वर्ष बाद अब भारत अपने करीबी दोस्त के
बचाव में उतर आया और इस समय ये दोस्त है भूटान- इसके बाद चीन द्वारा अपने सरकारी
प्रवक्ताओं और सरकारी मीडिया की पूरी फौज भारत को तरह-तरह से डराने के लिए छोड़ दी
गयी। हर रोज चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स भारत के खिलाफ जहर उगलता दिखा।
चाइना का थिंक टैंक कभी कश्मीर में घुसने की धमकी दे रहा है तो कभी सिक्किम में
षडयंत्र करने की-जब यहाँ भी उसकी धमकी का असर वर्तमान केंद्र की सरकार पर होता
नहीं दिखा तो उसकी ओर से भूटान से लेकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक में भी भारत
को देख लेने की धमकी दी जाने लगी। शायद बीजिंग ने कभी नहीं सोचा होगा कि थिंपू को
बचाने के लिए दिल्ली इतने आगे बढ़ जाएगी।
यदि बीता इतिहास खांगालें तो भारत ने आजादी के बाद ल्हासा में अपना
प्रतिनिधि ब्रितानी आईसीएस अफसर ह्यूज रिचर्ड्सन को चुना। वे 1947 से 1950 तकभारतीय मिशन के इंचार्ज थे। 15 जून 1949 को भारत के विदेश मंत्रालय को भेजे गए
संदेश में उन्होंने सुझाव दिया था कि भारत असाधारण परिस्थियों में चुंबी घाटी से
लेकर फरी तक कब्जा करने के बारे में विचार कर सकता है। चुंबी घाटी, भूटान और सिक्किम के बीच राजनीतिक रूप
से महत्वपूर्ण तिकोना इलाका है। इसके 16 महीने बाद, चीनी फौज पूर्वी तिब्बत में घुस आई- उस
समय सिक्किम के राजनीतिक मामलों के अफसर हरिश्वर दयाल थे। उन्होंने रिचर्ड्सन जैसा
ही संदेश दिल्ली को भेजा- उनका सुझाव था कि उस समय भारत सरकार ने रिचर्ड्सन की
सलाह पर ध्यान नहीं दिया। जबकि ये शुद्ध रूप से एक रक्षात्मक उपाय का सुझाव
था और इसमें आक्रमण की कोई मंशा नहीं थी। लेकिन अब चीन इस इलाके में घुस आया है।
आज डोकलाम विवाद पूरी विश्व मीडिया की सुर्खियाँ बन रहा है। चाइना का
आर्थिक गुलाम पाकिस्तान अपने न्यूज रूम में बैठा युद्ध की बाट जोह रहा है तो यूरोप
की मीडिया साफ सधे शब्दों में चाइना की इस हरकत पर आलोचना कर युद्ध से बचने की
सलाह भी दे रही है।
भूटान के डोकलाम भूभाग का राणनीतिक महत्व है। इसलिए चीन उसको शायद एकतरफा
तरीके से कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। भूटान उसको अपना क्षेत्र मानता है और यह
मामला भी वहीं का है जहां सीमा अनिश्चित है। दो देशों के साथ चीन की सीमा अभी पूरी
तरह निर्धारित नहीं हुई है। इनमें से एक भूटान और दूसरा भारत है। भारत का भी इसमें
एक किरदार इसलिए है कि तीनों देशों के बीच में भी एक समझौता है कि जहां भी ट्राई
जंक्शन होगा यानी जिस बिन्दु पर तीनों देशों की सीमाएं तय होगीं, वह तीनों देशों के बीच बातचीत से ही तय
होगी। चीन की इस एक तरफा आक्रामक कोशिश का विराध करना जरूरी है।
भारत और भूटान के बीच जो संधि है, उसके मुताबिक भारत का अब तक का जवाब
बिल्कुल सही कहा जाएगा। इसमें भारत के भी अपने निजी, राजनीतिक और बहुत अहम हित हैं।
सब जानते हैं कि डोकलाम के नीचे चुंबी वैली है, जिसे हम चिकेन्स नेक कहते हैं, जो पूर्वोत्तर भारत का संपर्क मार्ग
यानि सिलीगुड़ी कारिडोर है। भूटान ने ये साफ कहा है और भारत इस बात का समर्थन करता
है। चीन का रुख ये है कि आपको डोकलाम पर नहीं आना चाहिए लेकिन दुनिया जानती है और
वस्तु-स्थिति ये है कि चीन भूटान की सीमा में घुस आया है। भूटान छोटा देश है लेकिन
हर देश सम्प्रभु होता है। दोनों देशों के बीच यानी भूटान-चीन के बीच और भारत-चीन
के बीच ये समझौते अलग से हैं कि सीमा पर जब तक बातचीत चल रही है, तब तक विवादित सीमा पर शांति बहाल रहे।
भारत भूटान के समर्थन में खड़ा है। जिस तरह से भारत भूटान के समर्थन में खड़ा
हो सकता है। हमें उसका प्रयास करना चाहिए। यदि आज वहां खड़े नहीं हुए तो कल भूटान
का तिब्बत बनाने में ड्रेगन कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा चाइना में एक कहावत कि
एक कदम चलो उसके बाद लोगों की प्रतिक्रिया देखो, दूसरा कदम चलो फिर लोगों की
प्रतिक्रिया देखो यदि कोई रोक डांट न हो तो बढ़ते चले जाओ इस वजह से भी चीन को इस सिद्धांत
में विश्वास करने की आदत रही है कि पहले कब्जा करने और बाद में बातचीत शुरू करना
बेहतर है। इसी नीति के तहत आज उसने दक्षिण चीन सागर के आधे से ज्यादा हिस्से पर
कब्जा कर लिया है। चीन के दादागिरी भरे रवैये से उसके पड़ोसी देश जापान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया आदि देश भी खार खाए बैठे
हैं।
आज चीन अपना विस्तार चौतरफा कर रहा है। इस विस्तार को कई मोर्चों पर चीन अंजाम
दे रहा है। चीन खुद का विस्तार रोड, रेल, आर्थिक शक्ति और तकनीकी विकास के
माध्यम से कर रहा है। इसके साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में चीन बड़ी नौसैनिक शक्ति के रूप में उभर रहा है।
लेकिन उसके इस उभार में उसे आर्थिक और सामरिक तौर पर भारत चुनौती देता दिख रहा है।
हालाँकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ किया है कि यु( किसी समस्या का
समाधान नहीं है क्योंकि युद्ध के बाद भी समस्याओं का निपटारा बातचीत से ही हल होता
है। 2014 में चीन
ने भारत में 116 बिलियन
डॉलर का निवेश किया जो आज की तारीख में 160 बिलियन डॉलर होगा या है। चीन ने इतना
ज्यादा भारत में निवेश किया है। हमारी आर्थिक क्षमता बढ़ाने में चीन भी मदद कर रहा
है। मामला केवल डोकलाम का नहीं है। जिस देश में चीन इतना ज्यादा निवेश कर रहा है
क्या उस देश से युद्ध चाहेगा?
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