अभी हाल ही में
मीडिया के माध्यम से पता चला कि एक फिल्म अभिनेता ने अपनी संतान का नाम तेमूर रखा
है. जिसे लेकर सोशल मीडिया में काफी शोर मचा है जबकि बच्चें के माता-पिता का तर्क
है कि तैमूर का उर्दू में मतलब होता है लोहा, यानी लोहे
की तरह मजबूत शख्स, बहादुर. अभी पिछले दिनों एक टीवी डिबेट में
पाकिस्तानी मूल के लेखक विचारक तारेक फतेह ने कहा था. मुझे बड़ा अफसोस होता है कि
भारतीय मुस्लिम आज भी अपने नाम अरबी भाषा में रखते है जबकि हिंदी भाषा में एक से
एक सुन्दर नाम है. आखिर शम्स की जगह सूरज नाम रखने में क्या आपत्ति है? जबकि
दोनों का शाब्दिक अर्थ एक ही है. हालाँकि यह तारेक फतेह का तर्क है लेकिन सवाल यह
कि तैमूर नाम रखने पर इतना बड़ा बवाल क्यों? आखिर कौन
था तैमूर? जबकि इसी इस्लाम और भाषा में दारा शिकोह, अशफाक उल्ला खान से लेकर मिसाइल मैन ए
पी जे अबुल कलाम तक बहुत ऐसे नाम है जो इस्लाम मे ही पैदा हुए है और जिनका नाम
सुनते ही सर श्रद्धा से नमन करता है
इतिहास कहता है
कि तैमूर के लिए लूट और क़त्लेआम मामूली बातें थीं. इसी कारण तैमूर हमारे लिए अपनी
एक जीवनी छोड़ गया, जिससे पता चलता है कि उन तीन महीनों में क्या
हुआ जब तैमूर भारत में था दिल्ली पर चढ़ाई करने से पहले तैमूर के पास कोई एक लाख
हिंदू बंदी थे. उसने इन सभी को क़त्ल करने का आदेश दिया. तैमूर ने कहा ये लोग एक
गलत धर्म को मानते है इसलिए उनके सारे घर जला डाले गए और जो भी पकड़ में आया उसे
मार डाला गया. जिसने दिल्ली की सड़कों पर खून की नदियाँ बहा दी थी.सैकड़ों मंदिरों
को अपने पैरों तले कुचल दिया था. हजारों नवयुवतियों का इस आक्रान्ता ने शील भंग
किया. इतिहासकारों कहते है कि दिल्ली में वह 15 दिन रहा और उसने पूरे शहर को
कसाईखाना बना दिया था. इसके बाद भी तैमूर नाम रखने के पीछे आखिर इस सिने अभिनेता
और अभिनेत्री का उद्देश्य क्या है?
एक पल को मान
लिया जाये नाम तो नाम ही होता है. उससे इन्सान महत्ता कम नहीं होती पर हमारे समाज
में जब किसी बच्चे का नाम रखा जा रहा हो तो तमाम बातें ध्यान रखी जाती हैं. नाम
ऐसा न हो कि उसे स्कूल या कॉलेज में चिढ़ाया जाए. हमारे यहां किसी को चिढ़ाना हो तो
उसके नाम में से ही कुछ ऐसा निकाला जाता है ताकि वो चिढ़ जाए. शायद यही वजह है कि
दुर्योधन, विभीषण, कंस और रावण जैसे नाम किसी के नहीं रखे गए. यदि
किसी का नाम कंस हो तो पहली छवि उसके क्रूर होने की बनेगी. जबकि विभीषण लंका जीत में
राम की सेना में मुख्य किरदार था. लेकिन फिर भी उसे देशद्रोही माना गया कि जो अपने
सगे भाई का नहीं हुआ वो किसी का कैसे हो सकता है! ज्यादा दूर नहीं जाए तो “प्राण” नाम भी बहुत कम
सुनने को मिलता है प्राण निहायत ही शरीफ इंसान थे, लेकिन
परदे पर हमेशा बुराई के साथ खड़े रहते थे, इसलिए लोगों ने
बच्चों के नाम प्राण नहीं रखे. प्राण की बेटी ने तो एक सर्वेक्षण ही कर डाला था कि
फलां सन के बाद कितने लोगों ने बच्चों के नाम प्राण रखे हैं और नतीजा लगभग शून्य
ही रहा.
भारत की सहिष्णु
और धर्मनिपेक्षता का यही जीवित प्रमाण है कि यहाँ अकबर, बाबर और
औरंगजेब जैसे नाम रखने पर कोई कुछ नहीं बोलता इसे सिर्फ एक धर्म का विषय माना जाता
रहा है. वरना विश्व के किसी देश में ऐसी मिशाल नहीं मिलेगी शायद ही किसी कि हिम्मत
हो कि इजराइल में कोई अपने बच्चें का नाम हिटलर रखे? जर्मनी
में कोई अपने बच्चें का नाम स्टालिन रखे? अमेरिका में कोई
ओसामा पैदा हो तो? वहां के लोग ही उस व्यक्ति का जीना मुश्किल कर
देंगे. लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ भारत को
लूटने वाले और असंख्य भारतीयों को मौत के घाट उतारने वाले लोगों के नाम पर लोग
अपने बच्चों का नामकरण करते हैं. आखिर किस आधार पर उन्हें अपना आदर्श मानते है? तैमूर
और बाबर जैसे आक्रान्ताओं के नाम पर अपने बच्चे का नाम रखने वाले किस मानसिकता और
विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते है?
एक सवाल यह भी
है कि जब यह लड़का आगे समाज में जाएगा. स्कुल में जाएगा. जहाँ बच्चे को इतिहास ये
बताया जाएगा की तैमूर लंग एक विदेशी आक्रमणकारी था जिसने लाखों हिन्दुओं का खून
बहाया और मदिरों को तोडा तब क्या ये तैमूर सैफ अली खान खुद को स्वीकार पायेगा?
शायद नहीं! क्योंकि कोई भी सभ्य समाज अपने बच्चे का नाम इन नकारात्मक
छवि वालों लोगों के नाम पर नहीं रखता. कौरव 100 भाई थे. लेकिन कोई भी माँ बाप इन
100 नामों में से एक भी नाम अपने बच्चो का नहीं रखता. पर वहीँ पांचों पांडवों के
नाम पर और दशरथ के चारो पुत्रों के नाम पर लोग अपने बच्चों के नाम रखते हैं.
क्योंकी हम जानते है कौन सत्य के साथ खड़ा था और कौन असत्य के साथ.
त्रेतायुग युग
मर्यादा पुरषोत्तम राम हुए आगे चलकर इस नाम पर भारत की करोड़ों जनता ने अपना नाम
रखा. बच्चें का नाम राम नाम रखने का अर्थ था राम के पदचिन्हों पर चलना. हमारे यहाँ
नामों की कोई कमी नहीं है वीर अब्दुल हमीद से लेकर वीर शिवाजी तक यहाँ एक से एक
वीरों के नाम से इतिहास भरा पड़ा है. पर मुझे कोई बता रहा था कि जब मजहब विशेष मे
कोई स्वामी दयानन्द, श्रद्धानन्द, मर्यादा
पुरषोंत्तम राम, श्री कृष्ण भगत सिंह आदि पैदा हीं नहीं होते तो
फिर कहाँ से ऐसे आदर्श नाम लाये? इनके यहाँ तो तैमूर, औरंगजेब,
चंगेज खाँ, गजनी, गोरी,
दाऊद, ओसामा आदि हीं जन्म लेते है, तो
फिर इन्हीं हत्यारों मे से किसी एक नाम को चुनना इनकी मजबूरी है. बहरहाल नाम में
क्या रखा है आज तैमूर पैदा हुआ कल जरुर किसी न किसी माता की कोख से महाराणा प्रताप
भी जरुर पैदा होंगे...राजीव चौधरी
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