एक बार फिर हैदराबाद
को दादरी बनाया जा रहा है देश के तमाम नेता हैदराबाद पहुँच रहे है, इस बार मरने वाला कोई अखलाक नहीं बल्कि एक दलित नवयुवक है जिसका नाम रोहित है।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे
एक छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी की रात को फांसी लगाकर
आत्महत्या कर ली थी. आत्महत्या के इस मामले को लेकर जमकर सियासत हो रही है. इस सियासत
में मीडिया, नेता से लेकर छात्र संगठन तक कूद पड़े हैं। दलित समुदाय की सहानुभूति बटोरने
के लिए बहुत से नेता हैदराबाद जाकर रोहित के परिवार वालों और आंदोलन रत छात्र
संगठनों से मिल रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ अन्य छात्र संगठनो का कहना है कि जब याकूब
मेनन को फांसी दी गई थी तो एक प्रभावशाली छात्र संगठन “अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन” ने इस फांसी के खिलाफ प्रदर्शन किया था। जिसका नेत्त्र्व राहुल ने किया
था। जब परिसर में एबीवीपी के अध्यक्ष सूशील
कुमार ने इसका विरोध किया तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया जिसके परिणामस्वरूप
उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया यह एक बड़ी
विडंबना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन
ऐसी सारी घटनाओं का मूक गवाह बना रहा।
राहुल की मौत का
समाचार जानकर भारतवर्श के नेताओं ने उसकी जाति जानने के बाद राजनीति शुरू कर दी है|
भले ही नेता लोग कहते हो कि मामला एक छात्र की आत्महत्या का पर यह बात गले से नीचे
इस वजह से नहीं उतर रही कि छात्र तो इस देश में रोजाना सैकडो की तादात में मरते है
छात्रों की इस देश में किसे क्या पडी है? दिल्ली से सिर्फ 500 किलोमीटर दूर 30 घरों के चिराग बुझ गए और किसी को इसकी कोई फिक्र नहीं।
पिछले दिनों गुजरात से इंजीनियर बनने का सपना लेकर नितेश कोटा पहुंचा था, लेकिन सपनों का बोझ ऐसा बना कि फंदा लगाकर जान दे दी। ये दुख पिछले एक साल में
30 परिवारों पर टूटा है। साल 2013 में 17 छात्र-छात्रों ने फांसी के
फंदे पर अपनी जिंदगी को लटका दिया। साल 2014 में आंकड़े और बढ़ गए
कोटा में करीब 26 घरों के चिराग बुझ गए और 2015 से अब तक 30 छात्र अपनी
जा दे चुके हैं। किन्तु किसी नेता को इनसे क्या लेना!! यहाँ तो मामला जातिवाद का
है और इस बार मरने वाला राहुल दलित जाति से है और ऐसी खबरे मीडिया और नेताओं के
लिए नोट और वोट बटोरती है। इस प्रसंग पर कल बीबीसी हिंदी ने एक फोटो इन्टरनेट के
माध्यम से डाली थी जिसमे एक नवयुवक आत्महत्या कर रहा होता है नीचे खड़े कुछ नेता
टाइप लोग पूछ रहे थे भाई अपनी जाति बताकर मरना बाद में परेशानी होती है ये तस्वीर
जिसने भी बनाई उसके व्यंग में गंभीरता छिपी थी| कारण आप जातिप्रमाण पत्र के लिए
कहीं मत जाओ नेता आपको प्रमाणित कर देंगे| किन्तु इस सारे प्रसंग में एक प्रश्न कई
दिनों से चीख रहा है कि आज जो नेता दलितों के प्रति हमदर्द बनकर खडे है ये नेता उस
दिन कहाँ थे जब जातिवाद से त्रस्त होकर भगाना हिसार हरियाणा के 100 से ऊपर दलित परिवार सामूहिक रूप से मुस्लिम बन गये थे उस दिन इनकी दलित आत्मा
किसने पददलित कर दी थी? या फिर मुस्लिम वोट बेंक खो जाने के डर से यह लोग चुप रहे?
अभी हमने कुछ दिन पहले
मीडिया और नेताओं का दौहरा मापदंड देखा था जब मालदा, पूर्णिया, और जहानाबाद मजहबी आग में जल रहे थे तो सोचा कोई तो होगा जो इस घटना पर अपना
मूक प्रदर्शन तोडेगा किन्तु इस मामले पर किसी राजनेता की आँखे नम नहीं पाई ना कोई
तथाकथित राश्ट्र चिन्तक इस मामले पर मोखिक रूप से निंदा करता दिखाई दिया! आखिर
क्यों? आज इनकी आँखों में आंसू कहा से आये? देश में हजारों किसान आत्म ह्त्या कर लेते हैं. परन्तु इनमे अगडे, पिछडे, दलित, अल्पसंख्यक समुदायों और सब धर्मों के बदनसीबों के होने के कारण इसे कोई भी दल
वोट बैंक में कोई खास बढोतरी ना होने के कारण राजनैतिक मुद्दा नहीं बनाता. परन्तु
वहीँ लोग यदि कोई दलित या मुस्लिम
आत्महत्या कर लेता है तो देश की राजनीती में भूचाल आ जाता है ऐसे में
राजनैतिक दलों द्वारा इंसान की जान की अलग कीमत लगाना उचित नहीं लगता
पिछले कुछ वर्षो से
हमे भारत में कोई इन्सान मरता दिखाई नहीं दिया यहाँ यदि कोई मरता है या तो वो दलित
होता है या मुस्लिम सिख होता है या इसाई क्या राजनीति सिर्फ लाशो का जातिगत और
धार्मिक तमाशा बनाकर बेचने तक सिमित रह गयी? रोहित की मौत दुखद घटना थी हमारी सवेंद्नाये रोहित
के परिवार के प्रति है। हम इस जातिगत व्यवस्था के खिलाफ है हम वैदिक सिद्दांत
मनुर्भव के पक्षधर है हम मनुष्य व्यवस्था के पक्षधर है अतः हमारा भारत वर्ष के
तमाम नेताओं को सिर्फ इतना कहना है कि लाशो की जाति धर्म तलाश कर भेदभाव ना करे!!
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि
सभा rajeev choudhary
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