कुछ खबरे ऐसी होती
है जो इन्सान का ध्यान अपनी ओर खींच कर बार–बार सोचने पर मजबूर कर देती है| एक ऐसी
ही खबर पढ़कर ह्रदय द्रवित हो उठा| खबर तीन हिस्सों में है एक हिस्सा प्यार दूसरा
शादी और तीसरा हत्या| आजकल बड़े पैमाने पर हो रहे प्रेम विवाह जिसे भारत का युवा
आधुनिकता कहता है और विडम्बना यह है कि इस आधुनिकता के स्वांग पर माँ बाप भी मंद
मुस्कान बिखेर देते है कि हमारे बच्चे आधुनिक हो गये| किन्तु इस आधुनिकता की आड़
में वो कहीं न कहीं खो बैठते है अपनी मूल संस्कृति, सभ्यता, परम्परा और रीति
रिवाज़|
अब यहाँ एक प्रश्न जन्मता है कि इतना खोने के बाद आखिर हासिल कौन सी खुशी होती? या फिर बुशरा उर्फ़ मिनी धनंजय के माँ बाप की तरह आंसू दर्द और वेदना मिलती है| मिनी भी आजकल के पीढ़ी की तरह यही सोचती होगी कि धर्म कुछ नहीं होता माँ-बाप बस पालने पोसने के लिए होते है| बिना बॉय फ्रेंड के जीवन कुछ नहीं होता विदेश में रहने के सपने और सपनो का राजकुमार चाहें कोई भी हो! पर मिनी को ये नहीं पता था कि जिसके लिए तू माता-पिता धर्म,संस्कृति अपना देश छोड़ना चाह रही है वो तुझे प्यार नहीं मौत देगा और हत्यारा खुद उसका प्रेमी पति आतिफ पोपेरे होगा|
आतिफ पोपेरे और बुशरा उर्फ़ (मिनी) की मुलाकात मुंबई के मातुंगा कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी। उस समय बुशरा का नाम मिनी धनंजय था। शादी के बाद मिनी ने अपना नाम बदलकर पति का धर्म इस्लाम कबूल बुशरा रख लिया।
दोनों के बीच 2008 में प्यार हुआ था, जिसके बाद उन्होंने शादी कर ली। 2009 में उनकी एक बच्ची भी हुई। इन संबधो से पता चलता है की मिनी ने खुद की लाज का समर्पण शादी से पहले ही कर दिया होगा| खैर इसके कुछ समय बाद आतिफ दुबई चला गया, जहां वह एक दुकान में मैनेजर की नौकरी करने लगा। इसके दो साल बात मिनी भी आतिफ के पास दुबई चली गई। जब उनकी बच्ची तीन साल की हो गई, तो उसे रायगढ़ में रह रहे आतिफ के माता-पिता के पास भेज दिया । 2013 में मिनी के माता-पिता ने अपने बेटे निगिल से बात की, जो दुबई में ही रहता था और अपनी बहन के बारे में पता करने को कहा। जब निगिल ने पता किया तो 13 मार्च 2013 को पुलिस ने मिनी की मौत की पुष्टि की और शव पाए जाने की बात बताई। इस घटना ने मिनी के माता-पिता पर एक गहरा आघात किया जिस बेटी की जिद के कारण या उसकी ख़ुशी के लिए वो झुक गये थे और अपनी बेटी की खुशी के लिए धर्म और समाज की सीमा लांघकर यहाँ तक आये थे और बदले में मासूम बेटी की मौत की सुचना मिली थी| हालाँकि जीवन और मृत्यु सबकी निश्चित है होनी है और उसके कारण बनते है किन्तु एक भेड़ समाजवादी बन जान बुझकर भूखे भेडियों के साथ संधि कर ले कहाँ का समाजवाद है? जैसे आधुनिक समाज में आजकल लड़के-लड़कियां अपने फैसले खुद लेना चाहते है मात्र कुछ फिल्मे और कुछ आधुनिक विदेशी लेखको की पुस्तक पढ़कर वो खुद को अनुभवी मानकर अपनी जिन्दगी के सपनो की रेलगाड़ी के लिए काल्पनिक पटरी बिछा लेते है और माता-पिता के सपने पुराने खटारा होने का दावा करते है किन्तु भूल जाते है काल्पनिक पटरी पर यथार्थ का जीवन नहीं चलता और मिनी की तरह दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है|
यह एक मिनी की कहानी नहीं है| ना जाने हर रोज कितनी मिनी इस प्यार का शिकार हो रही है पर यह भूल जाती कि इन आतिफों के सामने प्यार से पहले अपनी किताब की आयत होती है जिसमे लिखा है| औरत तुम्हारी खेती है, उसका शोषण करना तुम्हारा हक है, वो सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन होती है| बहरहाल जो भी हुआ दुःख मनाए जाने के सिवा सिर्फ एक रास्ता है कि अपने बच्चों को आजादी दे किन्तु साथ में अच्छे संस्कार और संस्कृति भी दे ताकि और मिनी मरने से बच जाये
अब यहाँ एक प्रश्न जन्मता है कि इतना खोने के बाद आखिर हासिल कौन सी खुशी होती? या फिर बुशरा उर्फ़ मिनी धनंजय के माँ बाप की तरह आंसू दर्द और वेदना मिलती है| मिनी भी आजकल के पीढ़ी की तरह यही सोचती होगी कि धर्म कुछ नहीं होता माँ-बाप बस पालने पोसने के लिए होते है| बिना बॉय फ्रेंड के जीवन कुछ नहीं होता विदेश में रहने के सपने और सपनो का राजकुमार चाहें कोई भी हो! पर मिनी को ये नहीं पता था कि जिसके लिए तू माता-पिता धर्म,संस्कृति अपना देश छोड़ना चाह रही है वो तुझे प्यार नहीं मौत देगा और हत्यारा खुद उसका प्रेमी पति आतिफ पोपेरे होगा|
आतिफ पोपेरे और बुशरा उर्फ़ (मिनी) की मुलाकात मुंबई के मातुंगा कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी। उस समय बुशरा का नाम मिनी धनंजय था। शादी के बाद मिनी ने अपना नाम बदलकर पति का धर्म इस्लाम कबूल बुशरा रख लिया।
दोनों के बीच 2008 में प्यार हुआ था, जिसके बाद उन्होंने शादी कर ली। 2009 में उनकी एक बच्ची भी हुई। इन संबधो से पता चलता है की मिनी ने खुद की लाज का समर्पण शादी से पहले ही कर दिया होगा| खैर इसके कुछ समय बाद आतिफ दुबई चला गया, जहां वह एक दुकान में मैनेजर की नौकरी करने लगा। इसके दो साल बात मिनी भी आतिफ के पास दुबई चली गई। जब उनकी बच्ची तीन साल की हो गई, तो उसे रायगढ़ में रह रहे आतिफ के माता-पिता के पास भेज दिया । 2013 में मिनी के माता-पिता ने अपने बेटे निगिल से बात की, जो दुबई में ही रहता था और अपनी बहन के बारे में पता करने को कहा। जब निगिल ने पता किया तो 13 मार्च 2013 को पुलिस ने मिनी की मौत की पुष्टि की और शव पाए जाने की बात बताई। इस घटना ने मिनी के माता-पिता पर एक गहरा आघात किया जिस बेटी की जिद के कारण या उसकी ख़ुशी के लिए वो झुक गये थे और अपनी बेटी की खुशी के लिए धर्म और समाज की सीमा लांघकर यहाँ तक आये थे और बदले में मासूम बेटी की मौत की सुचना मिली थी| हालाँकि जीवन और मृत्यु सबकी निश्चित है होनी है और उसके कारण बनते है किन्तु एक भेड़ समाजवादी बन जान बुझकर भूखे भेडियों के साथ संधि कर ले कहाँ का समाजवाद है? जैसे आधुनिक समाज में आजकल लड़के-लड़कियां अपने फैसले खुद लेना चाहते है मात्र कुछ फिल्मे और कुछ आधुनिक विदेशी लेखको की पुस्तक पढ़कर वो खुद को अनुभवी मानकर अपनी जिन्दगी के सपनो की रेलगाड़ी के लिए काल्पनिक पटरी बिछा लेते है और माता-पिता के सपने पुराने खटारा होने का दावा करते है किन्तु भूल जाते है काल्पनिक पटरी पर यथार्थ का जीवन नहीं चलता और मिनी की तरह दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है|
यह एक मिनी की कहानी नहीं है| ना जाने हर रोज कितनी मिनी इस प्यार का शिकार हो रही है पर यह भूल जाती कि इन आतिफों के सामने प्यार से पहले अपनी किताब की आयत होती है जिसमे लिखा है| औरत तुम्हारी खेती है, उसका शोषण करना तुम्हारा हक है, वो सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन होती है| बहरहाल जो भी हुआ दुःख मनाए जाने के सिवा सिर्फ एक रास्ता है कि अपने बच्चों को आजादी दे किन्तु साथ में अच्छे संस्कार और संस्कृति भी दे ताकि और मिनी मरने से बच जाये
दिल्ली आर्य प्रतिनधि सभा चित्र गूगल से साभार लेख
rajeev choudhary
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