Thursday, 11 July 2019

कब तक पलायन करते रहेंगे हिन्दू?


कैराना के बाद अब इसी उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर का प्रहलादनगर भी अखबारों की सुर्खियों में है वजह यहां से भी बड़ी तादाद में हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है सन 1947 में देश की आजादी के दौरान बंटवारे के बाद मेरठ की प्रहलादनगर कॉलोनी शरणार्थी कॉलोनी के रूप में बसाई गई थी लेकिन आज 70 साल बाद एक बार फिर लोगों को यहां से जाने के हालात पैदा हो रहे हैं यहाँ से भी पलायन करने का वही है जो पाकिस्तान बांग्लादेश और कश्मीर में रहा था आए दिन मोहल्ले की महिलाओं, बेटियों से छेड़खानी की घटनाएं आम बात होना, गलियों में मुस्लिम समुदाय के लड़के बेखौफ आए दिन बाइकों पर गलियों मे चक्कर लगाते हैं और परेशान करते हैं मेरठ के इस मुहल्लेवासियों का आरोप है, युवतियों पर फब्तियां कसना और मारपीट करना इन युवकों का शगल बन चुका है इन सभी बातों और वारदातों से परेशान होकर इन्होने अपना यहां का घर बेच दिया और परिवार सहित मेरठ के किसी दूसरे मुहल्ले में जाकर बस गए यह सिर्फ प्रह्लाद नगर में ही नहीं बल्कि इस मोहल्ले से सटी दूसरी कालोनियां जैसे कि स्टेट बैंक कॉलोनी, राम नगर, हरिनगर, इश्वरपुरी, विकासपुरी जैसे दर्जनों मोहल्ले ऐसे हैं जो एक खास समुदाय के लोगों के कब्जे आ चुके हैं और हिंदू परिवारों का पलायन हो चुका है

कुछ समय पहले दिल्ली के सराय रोहिल्ला में स्थित तुलसीनगर और दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र में स्थित ब्रह्मपुरी इलाके से लोगों के पलायन की खबरें आई थीं यहां भी लोगों ने अपने घरों के बाहर यह मकान बिकाऊ है लिखना शुरू कर दिया था यही नहीं इस समय देश में कम से कम 17 राज्य है, जहां से हिंदुओं को अपनी जन्मभूमि वाले स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है यह एक किस्म से जमीन जिहाद है यानि हिन्दुओं के मोहल्लों में ऐसी हरकते की जाये ताकि वह अपनी जमीन ओने पौने दामों में बेचकर दूसरी जगह चले जाएँ! जम्मू कश्मीर, हरियाणा का मेवात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के कई इलाके, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के अनेकों जिलों में हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर करने के अलावा उनकी लड़कियों को अपमानित किया जा रहा है, उनकी जमीन जबरन कब्जाई जा रही है, मंदिरों पर हमले हो रहे हैं, उन्हें अपने त्योहारों को नहीं मनाने दिया जाता है

एक समय कश्मीरी पंडितों को रातों रात अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा था पाकिस्तान से जिया-उल-हक की तानाशाही से लेकर तालिबान के अत्याचारों तक पाकिस्तानी हिन्दुओं का जीवन दूभर ही रहा है आजादी के वक्त पाकिस्तान में कुल 428 मंदिर थे, जिनमें से अब सिर्फ 26 ही बचे हैं मानवाधिकार आयोग की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हर महीने 20 से 25 हिन्दू लड़कियों का अपहरण होता है और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है इसी तरह अब भारत में भी हिन्दू जाति कई क्षेत्रों में अपना अस्तित्व बचाने में लगी हुई है इसके कई कारण हैं, इस सच से हिन्दू सदियों से ही मुंह चुराता रहा है जिसके परिणाम समय-समय पर देखने को भी मिलते रहे हैं इस समस्या के प्रति शुतुर्गमुर्ग बनी भारत की राजनीति निश्चित ही हिन्दुओं के लिए घातक ही सिद्ध हो रही है पिछले 70 साल में हिन्दू अपने ही देश भारत के 8 राज्यों में अल्पसंख्यक हो चला है

कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित संगठनों ने शुरू किया था जिनका नारा था- तुम भागो या मरो इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए असम कभी 100 प्रतिशत हिन्दू बहुल राज्य हुआ करता था किन्तु आज असम के 27 जिलों में से 9 मुस्लिम बहुल आबादी वाले जिले बन चुके हैं, जहां आतंक का राज कायम है पिछले चार दशक से जारी घुसपैठ के दौरान बंगलादेशी घुसपैठियों ने वहां बोडो हिन्दुओं की खेती की 73 फीसदी जमीन पर कब्जा कर लिया अब बोडो के पास सिर्फ 27 फीसदी जमीन है सरकार ने वोट की राजनीति के चलते कभी भी इस सामाजिक बदलाव पर ध्यान नहीं दिया इसी कारण असम के लोग अब अपनी ही धरती पर शरणार्थी बन गए हैं

वोट की राजनीति के चलते राजनितिक दलों ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को असम, उत्तर पूर्वांचल और भारत के अन्य राज्यों में बसने दिया राजनीति के कारण ही बंगाल के कई इलाके मुस्लिम बहुल हो चुके हैं और हिंदुओं का इन इलाकों में जीना भी दूभर हो गया है राज्य में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है अवैध घुसपैठ ने राज्य की जनसंख्या का समीकरण बदलकर  दिया है उन्हें सियासत के चक्कर में देश में वोटर कार्ड, राशन कार्ड जैसी सुविधाएं मुहैया करवा दी जाती हैं और इसी आधार पर वे देश की आबादी से जुड़ जाते हैं और कुछ दिन बाद दूसरे समुदाय की महिलाओं और जमीन पर कब्जे की कोशिश शुरू कर देते है बंगाल से केरल तक अनेकों खबरें अखबारों से लेकर मीडिया में शोर सुनते आ रहे है

जम्मू बंगाल और केरल की बात बहुत दूर की है आज हालात ये हो गये है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में लोगों को असुरक्षा के कारण पलायन करना पड़े, उनके सामने दुर्गा, शिव, राम, हनुमान समेत अन्य हिन्दू देवी देवताओं की झांकियों वाले मंदिर में तोड़फोड़ कर दी जाये लेकिन इसके बावजूद लुटियंस मीडिया को अब तक दिल्ली में रहने वाले हिंदुओं की पीड़ा नजर नहीं आई ये वही मीडिया है जो सीरिया और बाग्लादेश के लोगों के पलायन करने पर खूब मातम मनाती है रोहिंग्या को लेकर रोती दिखती है लेकिन जब देश की राजधानी के आसपास हिंदू पलायन करने पर मजबूर हैं तो उसने चुप्पी साध रखी है सवाल पलायनवादी हिन्दुओं से भी है कि कब तक, कहाँ तक पलायन करेंगे?
राजीव चौधरी 

जीसस ही ईश्वर है ?


जीसस के अनुयायियों ने कब और क्यों जीसस को भगवान के रूप में कहना शुरू किया और इसका क्या कारण था ऐसे कई सवाल अभी भी मिथकों में लिपटे पड़े है। कुछ लोग कहते हैं कि जीसस सिर्फ एक आदमी था जिसे उनकी मृत्यु के बाद भगवान बना दिया गया। जबकि बाइबल कहती है कि जीसस ईश्वर के पुत्र और स्वयं पूरी तरह से ईश्वर थे। हालाँकि ऐसा बाइबिल में करीब 2500 साल पहले लिखा गया था। परन्तु अब कुछ जिज्ञासु लोग प्रश्न करते है कि भगवान कैसे एक आदमी बन गया या एक आदमी कैसे भगवान बन गया?

हम इस सवाल पर नहीं ठहरते कि क्या जीसस ईश्वर थे या वो ईश्वर के पुत्र। या फिर क्या जीसस वास्तव में मरने के बाद जिन्दा हुए थे और क्या वह मरे हुए लोगों को जिन्दा कर दिया करते थे। हम इन तमाम प्रश्नों को खुले छोड़ देते हैं। ये सब धार्मिक विश्वासों, आस्थाओं पर आधारित धार्मिक प्रश्न हैं। किन्तु हम एक इतिहासकार के रूप में यह जानने की कोशिश तो कर सकते कि क्या वास्तव ऐसा ही था या कुछ और था?

असल में ये ठीक उसी समय की कहानी है जब रोमन जनता अपने सम्राटों को ईश्वर कहा करती थी। ये सच है कि जीसस एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे कुछ लोग उनका अनुसरण भी करते थे। तो यह एक शाब्दिक दुर्घटना हो सकती है। जैसे भारत में ही सन 1830 में मृत्यु को प्राप्त हुए स्वामिनारायण  उर्फ सहजानन्द स्वामी को सब अवतारों का अवतार घोषित कर भगवान बनाकर आज उनके नाम से अक्षरधाम मंदिर देश विदेश में खड़े कर दिए इसी तरह जीसस को भी सम्राट की उपाधि दे दी हो या फिर जीसस और वहां तत्कालीन सम्राटों के बीच एक प्रतियोगिता हो कि भगवान कौन? हालाँकि इस प्रतियोगिता में जीसस की हार हुई और दंड स्वरूप जीसस को सूली पर चढ़ा दिया गया।

कहा जाता है मृत्यु के पश्चात जीसस को एक कब्र में रखा गया था और तीन दिन बाद जब कुछ महिलाएं वहां पहुंची तो उस कब्र को खाली पाया। इसके बाद उनके स्वर्ग में जाने की कहानियों का अविष्कार हुआ। लेकिन क्या सिर्फ खाली कब्र की वजह से लोग उनके ईश्वर होने पर विश्वास करने लगे? सोचिए आप किसी को कब्र में दफनाते हैं और उसके तीन दिन बाद आप वापस जाते हैं और शरीर कब्र में नहीं है, तो आपके मन पहला विचार क्या आएगा! क्या किसी ने शरीर चुराया है? या किसी ने शरीर को स्थानांतरित कर दिया हो? ये आ सकता है कि अरे कहीं में मैं गलत कब्र पर तो नहीं आ गया हूँ? या इन सबके विपरीत ये विचार आएगा कि वाह वह स्वर्ग में ले जाया गया है और ईश्वर का बेटा बन गया है?

हालाँकि ऐसे सब विचार लोगों की सोच और विवेक पर निर्भर करते है। किन्तु कब्र का खाली पाया जाना एक ऐतिहासिक सवाल है और स्वर्ग में जाना धार्मिक आस्था का और आस्था सवालों को ढक देती है; परन्तु इतिहास तो हमेशा नये सवाल कुरेदता है। इसलिए इतिहास कहता है खाली कब्र भ्रम पैदा कर सकती है, अगर भ्रम के बजाय विश्वास पैदा हो तो इसे आध्यात्मिकता की कमी समझी जाये।

बताया जाता है जीसस को सूली रोमन गवर्नर पोंटियस के आदेश पर हुई थी। एक अपराधी मानते हुए उन्हें यह सजा दी गयी थी तो जाहिर है उनका शव किसी तरह की आम कब्र में दफना दिया गया होगा! जीसस की मृत्यु के बाद कब्र से गायब होने की घटना की अफवाह रोमन साम्राज्य में फैलती गयी लोगों ने अलग-अलग तरीकों से घटना का चमत्कारिक ढंग से उल्लेख किया कि रोम में जबरदस्त बदलाव आ गया। सम्राट कॉन्सटेंटाइन को धर्म की समझ कितनी थी कह नहीं सकते लेकिन राजनीति की समझ थी, विद्रोह का भय था अतरू सम्राट कॉन्सटेंटाइन जनता के इस विचार के साथ खड़ा हो गया और जीसस को मरणोप्रान्त अपने समकक्ष ईश्वर की उपाधि तक प्रदान कर दी।

यदि रोम का इतिहास देखा जाये तो उस समय का रोम आज की तरह शिक्षित नहीं था। जीसस यदि स्वयं के ईश्वर होने का दावा कर रहे थे तो सोचिए वह उन लोगों से कह रहे थे जो कबीलों और गुफाओं में रहते थे। बिखरा हुआ समाज था, लोग एक मत नहीं थे। जीसस की मृत्यु के बाद रोमन सम्राट ने इसका लाभ उठाया और रोम को ईसाई धर्म राज्य बना डाला यदि वह ऐसा नहीं करते तो रोम कभी भी प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक ताकत नहीं बन पाती। और यह सब इस दावे पर टिका था कि जीसस ही ईश्वर और ईश्वर के पुत्र थे। यदि इसे धार्मिकता के आधार पर भी देखें तो जैसा कि घोषणा की गयी कि जीसस ईश्वर थे और वह ईश्वर के बेटे थे क्या इस हिसाब ईश्वर दो नहीं हो गये? तो एक समय दो ईश्वर कैसे हो सकते हैं? क्योंकि एक ही समय में एक आदमी कहे कि वह ही ईश्वर है और वह ही ईश्वर का बेटा है तो दुविधा खड़ी हो जाती है। फिर तो ईश्वर की पत्नी भी होगी और ईश्वर की ससुराल भी, उसके माता पिता भी होंगे भाई बंधू भी तब क्या यह माना जाये कि इंसानों की तरह ईश्वर का भी अपना पूरा परिवार है?
राजीव चौधरी 

Thursday, 25 April 2019

कन्हैया कुमार वामपंथ की अंतिम उम्मीद है..?


जावेद अख्तर ने भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह हो हराने के लिए मुसलमानों से कन्हैया कुमार के एकजुट होकर वोट करने को कहा हैं देखा जाये तो एक समय हिंदी भाषी राज्यों में अपनी मजबूत पकड़ और संसदीय उपलब्धियां रखने वाले वामपंथी दल और उनकी विचारधारा आज सिमट कर सिर्फ बिहार की बेगुसराय सीट तक सीमित हो चुकी है अगर बेगूसराय से कन्हैया कुमार किसी कारण जीत जाते है तो वामपंथ की राजनीति को कुछ समय के लिए जीवन मिल सकता है, हालाँकि संभावना कम है इसी कारण कई पत्रकारों से लेकर तमाम छोटे बड़े वामपंथी नेता और सेकुलरवाद की आड़ में इस्लामवाद परोसने वाले कई अभिनेता आज इस चुनाव में अपने युवा सितारे के कंधे पर सवार होकर अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ते हुए बेगूसराय की गलियों में वोट मांगते दिख जायेंगे

पिछले दिनों जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने देशद्रोह के केस में जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद कहा था कि मुझे जेल में दो कटोरे मिले एक का रंग नीला था और दूसरे का रंग लाल था मैं उस कटोरे को देखकर बार-बार ये सोच रहा था कि इस देश में कुछ अच्छा होने वाला है कि एक साथ लाल और नीला कटोरा है वो नीला कटोरा मुझे आंबेडकर मूवमेंट लग रहा था और वो लाल कटोरा मुझे वामपंथी मूवमेंट लग रहा था लेकिन कन्हैया कुमार इसमें वह एक तीसरे कटोरे का जिक्र करना भूल गये जो हरा कटोरा बेगुसराय सीट से चुनाव लड़ रहे वामपंथी दलों के साझा उम्मीदवार कन्हैया कुमार के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे जावेद अख्तर के जाने के बाद दिखा

ये सच है कन्हैया कुमार की बेगुसराय सीट से हार माओवाद, लेनिन और मार्क्सवाद की भारत में अंतिम कब्रगाह साबित होगी क्योंकि पिछले अनेकों वर्षों से धर्म को अफीम बता-बताकर मार्क्सवाद का धतूरा गरीब जनता को खिलाकर जिस तरह देश माओवादी, नक्सली खड़े कर देश में अनेकों नरसंहार किये है यह हार उनकी इस विचारधारा के ताबूत की अंतिम कील साबित होगी

देश के कई राज्यों में अनेकों वर्षों तक नक्सलवाद के नाम पर हिंसा मार्क्सवाद के नाम पर सत्ता सुख भोगने वाले वामपंथी नेताओं को आज अपनी विचारधारा के लिए राष्ट्रीय राजनीति ने कोई जगह दिखाई नहीं दे रही है शायद यही वजह रही होगी कि कन्हैया कुमार ने जेल से निकलने के बाद बिहार तक पहुंचते हुए अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा का इजहार कर दिया था कन्हैया कुमार ने आजादी, जय भीम और प्रसिद्ध लाल सलामके नारे के साथ वामपंथी राजनीति को नए दौर में नए सिरे से गढ़ने की कोशिश की थी

जो लोग आज इसे सिर्फ राजनितिक नारा समझ रहे है उन्हें यह सब नारे से आगे समझना होगा कि आज आजादी किसका नारा है और लाल सलाम किसका? क्योंकि जिस तरह दलितों को हिन्दू समाज में बाँटने का काम हो रहा है और जावेद अख्तर सरीखे चेहरे बेगुसराय पहुँचकर कन्हैया कुमार के मुस्लिमों के वोट मांग रहे है कहीं ये देश पर शुरूआती वैचारिक आक्रमण तो नहीं है?

आज लोगों को एक बार वामपंथ का इतिहास भी देख लेना चाहिए इसके बाद उनका निष्कर्ष उन्हें जरुर एक क्रूर सच की तरफ ले जायेगा बताया जाता है वामपंथ की विचाधारा को लेकर आधुनिक चीन की नींव रखने वाले माओ त्से तुंग यानि माओ की सनक ने 4.5 करोड़ अपने लोगों का रक्त बहाया था रूस में स्टालिन के 31 साल के शासन में लगभग 2 करोड़ से अधिक लोग मारे गए यही नहीं बताया जाता है कि इथियोपिया के कम्युनिस्ट वामपंथी तानाशाह से अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लाल सलाम अभियान छेड़ा 1977 से 1978 के बीच ही उसने करीब 5,00,000 लाख लोगों की हत्या करवाई एक किस्म से देखा जाये तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्टालिन से लेकर माओ या फिर अभी तक मार्क्सवाद के नाम पर अपराध और लूट हत्या हिंसा की इन लोगों द्वारा ऐसी भीषण परियोजनाएं चलाई कि जिनका जिक्र किसी आम इन्सान को शर्मिदा कर सकता हैं

आज वामपंथियों को समझना होगा कि विश्व के लगभग सभी देशों से मार्क्सवाद की विचारधारा का अंत हो चुका है?  कहा जाता है सोवियत रूस का पहला वाला अस्तित्व आज नहीं बचा जहाँ मार्क्सवाद का पहला प्रयोग किया था इसी विचारधारा के कारण वह ढह चूका है पूर्वी यूरोप के कई देश धूल में मिल गए कुछ तो गायब हो गए जहां वामपंथी शासन व्यवस्था थी. पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया जैसे देश नक्शे में नहीं मिलते हंगरी-पोलैंड से भी यह विचारधारा आई गई हो चुकी हैएशिया में चीन का मार्क्सवाद अब बाजारवाद से गले मिलता दिख रहा है भारत में मार्क्सवाद बंगाल और त्रिपुरा नकार चुके है और केरल में वामपंथी आज संघर्ष सिमटता दिखाई दे रहा है

छतीसगढ़ झारखण्ड और बंगाल को तीसरे दिन दहलाने वाले नक्सलवादी एक-एक कर आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा के जीवन की ओर लौट रहे है अब जो यह ताजा बिहार का बेगूसराय चुनावी मैदान है यह वामपंथियों की अवसरवादी राजनीति की सवारी है किसी तरह संसद में छलांग लगा कर विचारधारा को जीवित करने की चेष्ठा है इसमें मनुवाद को गाली देते हुए मेकअप में सजे कथित बुद्धिजीवियों की कतार है. सेकुलरवाद का ढोंग है आंबेडकर जी के नाम पर दलितों को सुनहरा सपना बेचने का प्रयास है जो लोग इसे समाजवाद से जोड़कर देख रहे है या भय भूख की आजादी नाम पर भविष्य के सपने संजोये है, उन्हें बाद में वही मिलेगा जो 35 साल बंगाल में सत्ता में रहने पर बंगाल के लोगों को मिला है
राजीव चौधरी 

धर्मनिरपेक्षता एक जीता जागता षड्यन्त्र हैं


हाल ही में योगेंद्र यादव ने इंडिया टुडे टीवी पर भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय के साथ साध्वी प्रज्ञा सिंह की उम्मीदवारी पर एक बहस में अपनी पारिवारिक कहानी साझा की. योगेंद्र यादव ने अपने दादा की हत्या एक दुखद किस्सा बताते हुए कहा कि उनके दादा हत्या उनके पिता की उपस्थिति में एक मुस्लिम भीड़ ने कर दी थी इसके बाद उनके पिताजी ने बच्चों को मुस्लिम नाम दिए यानि बच्चों के अरबी भाषा में रखे. वो योगेन्द्र को सलीम और योगेन्द्र यादव की बहन नीलम को 'नजमा' कहकर पुकारते थे.

योगेन्द्र यादव देश के एक समाज शास्त्री और चुनाव विश्लेषक के साथ आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक रहे है और आम आदमी पार्टी से निकाले जाने के बाद योगेंद्र यादव और जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने नई पार्टी 'स्वराज इंडिया पार्टी' इंडिया बनाई थी. देखा जाये तो योगेन्द्र यादव जो अपनी धर्मनिरपेक्षता का किस्सा सुना रहे थे वह कोई वोट की राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की एक बीमारी है और इस बीमारी का जन्म 90 के दसक में हुआ था.

कहा जा रहा है कि योगेन्द्र यादव जी ने इस किस्से को देश की धर्मनिरपेक्षता से जोड़ते हुए भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय जी पर साम्प्रदायिकता का आरोप जड़ते हुए उन्हें चुप करा दिया. एक कहावत है अगर मुझे डर लग रहा है तो मैं चैकन्ना और पडोसी को डर लगे तो वह डरपोक असल में योगेन्द्र यादव जी अपनी जिस पारिवारिक धर्मनिरपेक्षता का किस्सा सुना रहे थे उसमें मुझे कहीं भी धर्मनिरपेक्षता दिखाई नहीं दी हाँ मन में सवाल जरुर खड़े हो रहे है कि आखिर योगेन्द्र यादव जी असल कहना क्या चाह रहे थे.

यही कि उस मुस्लिम भीड़ द्वारा उनके दादा की हत्या करना कोई गुनाह नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा महान और पुन्य कार्य था कि हत्या से उनके पिताजी इतने प्रेरित और आत्मप्रसन्न हुए कि उन्होंने सोचा क्यों ना बच्चों को भी ऐसा ही बनाया जाये और उनके नाम मुस्लिम शब्द कोष से उठाकर रख दिए थे.

क्योंकि दुनिया में अगर नाम बच्चों के नाम रखने के लिहाज से देखें तो अक्सर लोग अपने बच्चों के नाम प्रेरणा लेकर रखते है और वो ही नाम रखना पसंद करते है जिसका कुछ अर्थ हमारे धर्म संस्कृति, सभ्यता वीरता से जुड़ा हो या फिर वो जो विशाल व्यक्तिव्य महान आत्मा या महापुरुष रहे हो. जैसे आज सरदार भगतसिंह जी के नाम पर बहुत सारे नाम भगत सिंह मिल जायेंगे या फिर कुछ लोगों के नाम के आगे राम होता तो कुछ नाम में राम शब्द बाद में आता है जैसे दयाराम रामकुमार, राम किशोर ऐसा ही श्रीकृष्ण जी के नाम में देख सकते हैं. कृष्णपाल कृष्णवीर आदि

दूसरा सवाल अच्छा जब योगेन्द्र यादव जी का नाम सलीम और उनकी बहन यानि नीलम जी का नाम नजमा रख ही दिया था फिर योगेन्द्र यादव वो कारण भी बताते जिसके बाद फिर उनका नाम सलीम से योगेन्द्र हुआ. और नजमा का नीलम? क्या योगेन्द्र यादव जी बता सकते है कि मार्च 2016 में दिल्ली के विकासपुरी में एक डेंटिस्ट डॉक्टर पंकज नारंग की कुछ मुस्लिम लोगों द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी थी क्या एक बेकसूर, बेवजह जान गंवा देने वाले डॉक्टर की पत्नी भी अपने बच्चों के नाम मुस्लिम रख लें?

 गुरमेहर कौर  का नाम भी आपने सुना होगा करगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन मनदीप सिंह की बेटी हैं. जो हाथ में एक तख्ती पर लिखकर सामने आई थी कि पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा, उन्हें जंग ने मारा है. असल में दोस्तों धर्मनिरपेक्षता कोई बुरी चीज नहीं है इसका अर्थ होता है मैं अपने धर्म में विश्वास के साथ अन्य सभी धर्म मजहब पंथ को सम्मान देता हूँ पर मेरी अपनी आस्था अपने महापुरुषों अपने धर्म में अडिग है. किन्तु भारत में वामपंथियों के द्वारा इसकी परिभाषा को बदल दिया गया और नई परिभाषा यह खड़ी कर दी कि अपने धर्म को अपशब्द और दूसरे को सही कहना ही जैसे सच्ची धर्मनिरपेक्षता हो?

यह सिर्फ वोट की राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की एक बीमारी है और इस बीमारी का जन्म 90 के दशक में हुआ था. आज आपको योगेन्द्र यादव जैसे अनेकों पत्रकार, नेता और अभिनेता  धर्मनिरपेक्षता की इस बीमारी से ग्रसित दिखाई देंगे.

साल 2007 में प्रमुख वामपंथी सी गुवेरा के पुत्र कैमिलो ने भी घोषणा थी कि केवल मार्क्सवादियों और इस्लामवादियों का गठबन्धन ही संयुक्त राज्य अमेरिका को नष्ट कर दुनिया पर राज कर सकता हैं. कुछ वामपंथी तो और आगे बढ़ गये और इस्लाम में धर्मांतरित तक हो गये. जर्मनी के गीतकार कार्लेंज स्टाकहावसन ने 11 सितम्बर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की घटना जिसमें करीब 3000 अमेरिकी लोगों की मौत हुई थी इस घटना को ‘समस्त विश्व के लिये महानतम कार्य’ की संज्ञा दी थी.

दरअसल वामपंथियों की पूंजीवाद में संकट की प्रतीक्षा बेकार गयी, पतन का कम्युनिष्ट आन्दोलन झुककर मोलवियों के खेमे में चला गया. क्योंकि इस्लाम में एक बड़ा वर्ग मौलिक सुविधाओं से दूर, गरीबी, भूख की जिन्दगी बसर कर रहा था. जिन लोगों को वामपंथी कभी समाजवाद के लिए इक्कठा नहीं कर पाए उन लोगों को मौलवी द्वारा इस्लामवाद के नाम पर खड़ा कर लिया गया.

इसी का नतीजा है कि प्रसिद्ध वामपंथी और सीपीआई नेता कविता कृष्णन ने कश्मीर में पत्थरबाजों को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि कश्मीर में अलगाववादी और आतंकी पाकिस्तान पैदा नहीं करता बल्कि भारतीय सेना पैदा करती है. यही नहीं इससे कई कदम आगे बढ़ते हुए अरुंधती राय ने तो यहाँ तक कहा था कि कश्मीर में भारतीय सेना का आक्रमण शर्मनाक है.

इस तरह के बयान यही दर्शाते है कि वामपंथी विचारधारा विश्व के सभी कोनो में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इस्लामवाद को प्रोत्साहित कर रही है हिंसात्मक विचारों और कार्यों को संवेदना मासूमियत और धर्मनिरपेक्षता का आवरण दे रही है. जिससे यह गठबंधन अपनी उर्जा लेकर पल्लवित पोषित हो रहा है.

ऐसे में आम आदमी पार्टी की राष्‍ट्रीय कार्यकरणी के सदस्‍य रहे हैं राजनीतिक विश्‍लेषक कहे जाने वाले व स्वराज इंडिया पार्टी के संस्‍थापक योगेन्द्र यादव की दुखद कहानी भले ही वामपंथियों के लिए संवेदना और मीडिया के लिए खबर हो पर योगेन्द्र यादव जी को इन सवालों के जवाब जरुर देने चाहिए कि आखिर उस भीड़ ने ऐसा कौनसा महान कार्य किया था जिससे उनके पिताजी ने प्रसन्न होकर बच्चों के नाम मुस्लिम रख दिए थे..?
 विनय आर्य 


आरक्षण बाद में पहले महिलाओं को सम्मान देना सीखें राजनेता


राजनेता जब आप इस शब्द को आप सुनते हैं तो आपके मन में कैसी फीलिंग आती है?  कैसी भी आती होगी पर मुझे नहीं लगता है समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के लिए सही फिलिंग आती हो कई रोज पहले उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही अभिनेत्री जया प्रदा के अंगवस्त्रों को लेकर बेहूदा टिप्पणी की थी.

अनेकों नेता और देश के लोग इनके इस बयान से गुस्सा भी हुए और पलटवार भी किया किन्तु मेरी आजम खान से सभ्यता और संस्कार की अपेक्षा बहुत पहले तब खत्म हो गयी थी जब इन्होने अपने राष्ट्र अपनी भारत माता को डायन तक कह डाला था हालाँकि देखा जाये तो अभिनेत्री से नेता बनी जयाप्रदा आजम खान की कलाई पर राखी बांधती रही है लेकिन इसके बावजूद भी एक बहन के प्रति उनके ये शब्द भारतीय समाज हमारे संस्कार हमारी संस्कृति के विरुद्ध ही नहीं बल्कि रिश्ते नातों की गरिमा पर भी चोट करती है

उनका यह बयान उनकी भूल और बड़बोलेपन से बिलकुल तौलकर न देखा जाये क्योंकि इससे पहले भी जयाप्रदा को आजम ने नचनियासे लेकर घुँघरू वालीतक कहा था पूरे शहर में उनकी फिल्मों के अंतरंग दृश्यों के पोस्टर तक लगाए गए लेकिन जयाप्रदा घूम घूम कर वोटरों के बीच आजम खान को भैया कहती रहीं लेकिन एक भाई क्या होता है बहन के प्रति उसका स्नेह, राजनीति और रिश्तों की गरिमा आजम खान को कौन समझाए?

शायद में नाहक ही दुखी हो रहा हूँ क्योंकि मैं अपने संस्कृति और सभ्यता के आईने से इस अश्लील बयान को देख रहा हूँ पर जिसने यह बयान दिया उनकी संस्कृति और सभ्यता में शायद भाई बहन का रिश्ता पवित्र न समझा जाता हो और यह बयान गंगा जमुना तहजीब भूलकर अपनी मजहबी संस्कृति के अनुरूप दिया हो? क्योंकि यह कोई नई मानसिकता नहीं है, जायसी के अनुसार अलाउद्दीन पद्मिनी को अपने विजयी अभियान के पहले खुद देखने आता है, तो वह अपने साथ एक शीशा लेकर आता है और उसमें पद्मिनी को देखता है वो रतन सिंह से कहता है कि वो पद्मिनी को अपनी बहन की तरह मानता है लेकिन देखकर फिर उसी बहन पर गन्दी निगाह रख लेता है बस यही है इनकी वो मजहबी मानसिकता जो शुरू से चली आ रही है तो इसमें ज्यादा दुखी होने की बात नहीं हैं

हाँ यह जरुर है कि यदि महिला सम्मान की बात हो तो यह कोई अकेला नेता नहीं है अगर देश की राजनीति में देखें तो रिश्तों से अलग भी महिला राजनेता पुरुष नेताओं के हाथों अश्लील, अभद्र और अपमान जनक टिप्पणओं की शिकार होती रही हैं 2017 में शरद यादव ने वोट मांगते हुए कहा था कि वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी होती है अगर बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी लेकिन अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी इनके इस बयान के बावजूद भी हमारे देश की संसद ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरुस्कार दिया यह हमारे लिए शायद जरुर शर्म का विषय है

वैसे देखा जाएँ चुनावी रैलियों में अकसर राजनीतिक बयानबाजी में महिलाओं को निशाना बनाया जाता रहा है लेकिन अन्य कई मौको और मुद्दों पर भी कई राजनेता अपनी मानसिकता का दिखावा करने से बाज नहीं आते साल 2012 में दिल्ली में निर्भया गैंगरेप के बाद जब छात्राओं ने बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन किया था तब कांग्रेस सांसद अभिजीत मुखर्जी ने हाथ में मोमबत्ती जला कर सड़कों पर आने वाली ये सजी संवरी महिलाएं पहले डिस्कोथेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के ख़िलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंची ऐसा ही एक बयान कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी पार्टी की महिला नेता मीनाक्षी नटराजन के बारे में कहा था कि मीनाक्षी जी का काम देख कर मैं यह कह सकता हूँ कि वह 100 टका टंच माल हैं

कुछ समय पहले समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार जैसे घिनोने कृत्य पर कहा था कि लडकें है और लड़कों से गलती हो जाती हैं साल 2012 में गुजरात चुनावों के नतीजों पर चल रही एक टीवी बहस के दौरान काँग्रेस सांसद संजय निरुपम ने स्मृति ईरानी को कहा था, कल तक आप पैसे के लिए ठुमके लगा रही थीं और आज आप राजनीति सिखा रही हैं

कहा जाता है ऐसे बयानों के बावजूद अकसर ये राजनेता हल्की फुल्की फटकार के बाद बच निकलते हैं यानि नेता किसी भी पार्टी या दल से जुड़ें हो महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक बयान देना सामान्य बात हो गयी है जबकि सितम्बर 2017 में ठाणे की एक अदालत ने कहा था कि छम्मकछल्लो शब्द का इस्तेमाल करना एक महिला का अपमान करने के बराबर है भारतीय समाज में इस शब्द का अर्थ इसके इस्तेमाल से समझा जाता है आम तौर पर इसका इस्तेमाल किसी महिला का अपमान करने के लिए किया जाता है और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत अपराध किया है किन्तु ऐसे अपराध चुनाव आयोग और संविधान की नजर में देश के नेताओं पर लागू क्यों नहीं होते? ऐसे में मेरा तमाम राजनितिक दलों से अनुरोध है महिला आरक्षण की बात बाद में कर लेना पहले महिलाओं को सम्मान देना सीख लें
विनय आर्य 

बदसूरत होते पारिवारिक रिश्ते


बिलकुल नया जमाना है लोग पत्र-पत्रिकाओं और किताबों की दुनिया से निकलकर इंटरनेट की रहस्यमयी दुनिया में प्रवेश कर चुके है ऐसे में एक से ज्यादा साथी रखने का रुझान अब सीमित दायरे में नहीं रहा है बल्कि लोग आज ऐसे रिश्तों को आजमा कर देख रहे हैं जिनको अब तक सामाजिक रूप से गलत समझा जाता था देखा जाये तो इंटरनेट की अत्याधुनिक दुनिया में आजकल कई लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाने वाले लोगों को भी आधुनिकता से जोड़ा जा रहा हैं, किन्तु इन आधुनिक रिश्तों के जो परिणाम सामने आ रहे है वो वाकई में सोचने वाले है कि आखिर हमारा समाज जा कहाँ रहा है!

अभी कई रोज पहले महाराष्ट्र के बल्लारपुर में कॉलेज में पढ़ाने वाले ऋषिकांत नाम के एक शख्स ने अपनी दो नाबालिग बेटियों को फांसी पर लटकाकर जान से मार डाला इसकी तस्वीर अपनी पत्नी प्रगति को व्हाट्सएप करने के बाद उसने खुद भी आत्महत्या कर ली पुलिस के अनुसार ऋषिकांत अपनी पत्नी प्रगति की बेवफाई से परेशान था दूसरा मामला बिहार के कंकड़बाग थाना क्षेत्र का है यहाँ एक बाप अपनी मासूम बच्ची को इसलिए शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देता था, क्योंकि उसकी पत्नी उसे छोड़कर किसी दूसरे के साथ चली गई थी
एक और मामला महाराष्ट्र के ठाणे जिले का कुछ समय पहले का है यहाँ एक शख्स ने अपनी पत्नी को चाकू से बेरहमी से मार डाला था घटना के वक्त उसकी पत्नी अपने ऑफिस में काम कर रही थी, पति चाकू लेकर उसके ऑफिस में पहुंचा और पत्नी पर एक बाद एक 26 वार कर डाले कारण यह शख्स अपनी पत्नी पर शक करता था पिछले साल मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में एक खोफनाक घटना ने तब सबके रौंगटे खड़े कर दिए थे जब एक पति ने अपनी पत्नी के चरित्र पर शक के चलते पत्नी की गर्दन काट कर थाने ले गया था
सभी जगह सिर्फ महिलाएं ही इन अवैध सम्बन्धों या शक का शिकार है नहीं हैं पिछले वर्ष फरवरी माह में ओडिशा के नबरंगपुर जिले में अवैध संबंध के शक में एक महिला ने अपने पति का प्राइवेट पार्ट काट दिया था यहाँ महिला को अपने पति पर शक था कि उसके किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध हैं यहीं नहीं पिछले एक साल में इस तरह की दर्जनों शिकायतें महिला थानों पहुंची है जिनमें कहा गया है कि मेरे पति मेरी जासूसी कराते हैं घर में मेरा मोबाइल चेक होता हैं मैं फेसबुक और व्हाट्स एप पर किससे क्या चैटिंग कर रही हूं इसकी पूरी डिटेल पति रखते हैं, साथ ही घर आने के बाद ऑफिस से आने वाले फोन पर मेरे पति शक की नजर से देखते हैं
असल में एक से ज्यादा साथी की चाह और फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर चैटिंग का शौक आए दिन पति-पत्‍‌नी के रिश्तों में दरार डाल रहा है चैटिंग के चलते आए दिन पति और पत्‍‌नी के बीच शक गहरा रहा है शक के बाद कई जगह रिश्ते टूट रहे है तो कई जगह हत्या हिंसा तक भी पहुँच रहे है यानि अभी तक पति और पत्नी के बीच भावनाओं और विश्वास का जो मजबूत सेतु हुआ करता था आज अविश्वास और बेपरवाह होते रिश्तों ने उस सेतु को कमजोर कर दिया है
कुछ सालों पहले तक ऐसी घटनाएँ पश्चिमी देशों में देखने को मिलती थी एक से ज्यादा साथी रखने का प्रचलन उनकी सामाजिक दुनिया हिस्सा था जबकि हमारे यहाँ पति-पत्नी को एक दूसरे के भरोसे प्रेम और एक दूसरे की आपसी स्वीकार्यता को बढ़ावा देने वाला रहा हैं किन्तु जैसे-जैसे टेक्नोलोजी का विस्तार हो रहा है ऐसे-ऐसे हमारे यहाँ भी सात फेरे और सात वचन से बंधे पवित्र रिश्तों में आज बिखराव, पतन, अपराध, हत्या, आत्महत्या आदि बड़ी तेजी से पांव पसार रही हैं या कहो कि सामाजिक सीमाएं और मर्यादाएं खोखली होकर बिखरती नजर आ रही हैं देखा जाये आपसी संवाद स्थापित करने का साधन स्मार्टफोन भी पति-पत्‍‌नी के रिश्ते में दूरियां लाने में कम जिम्मेदार नहीं हैं आज परिवारों में दिन की शुरुआत फेसबुक या व्हाट्सएप्प से होती है और देर रात तक आने वाले नोटिफिकेशन जगाए रखते हैं और इस लत की कीमत रिश्तों को चुकानी पड़ रही है
शादी के बाद अक्सर भावनाओं को न समझने के बहाने से लेकर जब दोनों अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए किसी तीसरे की तरफ आकर्षित होने लगते हैं यानि तीसरा इन्सान उनके बीच में आता है तब वैवाहिक रिश्ते का अंत शक से शुरू हो होता है और एकल परिवार में उन्हें समझाने वालों की कमी के चलते भी हालात मारपीट, हमले और हत्या तक पहुंच जाते हैं
शादी के बाद जहां वैवाहिक रिश्ते को बनाए रखने में पति और पत्नी दोनों की जिम्मेदारी होती है वहीं  इसके खत्म करने में भी दोनों का हाथ होता है एक दूसरे के प्रति विश्वास, समर्पण और आत्मीयता का भाव रिश्तों को मजबूत बनाता है अगर आप आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते है तब आप उस तकनीक का सदुपयोग आपसी रिश्तों में नजदीकी लाने में करें न कि उसे रिश्तों में दूरियां बनाने का कारण बनायें साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा बाहरी सम्बन्ध दोनों के बीच शक का आधार बनते हैं और ऐसे सम्बन्धों को न हमारा समाज स्वीकार करता न धर्म और न ही हमारा संविधान ऐसे में पति पत्नी दोनों को एक दूसरे पर विश्वास रखना होगा और सामने वाले को उस विश्वास को मजबूत करना होगा और यह आप पर निर्भर करता है कि आपको एक हँसता खेलता खुबसूरत रिश्तों परिवार चाहिए या दुःख क्लेश और हिंसा के अंधकार में जाता एक बदसूरत रिश्तों का परिवार यह सब सिर्फ आपको ही सोचना है क्योंकि परिवार आपका है

विनय आर्य