महाराष्ट्र और
कर्नाटक भारत के ऐसे दो राज्य है जिनमें अंधविश्वास निरोधक कानून लागू है। दोषी
पाए जाने पर कम से कम एक साल की सजा और 5000 तक
का जुर्माना किया जाएगा। इस बिल
में काला जादू, जादू
टोना, ज्योतिषीय भविष्यवाणियों
को भी शामिल किया गया
है। इस बिल के तहत इस तरह के अंधविश्वास भरे तरीकों जैसे बलि देना, बीमारी ठीक करने के लिए हिंसक तरीके अपनाना,
काला जादू, ख़ुद को चोट पहुंचाने जैसे अंधविश्वासों, ज्योतिष के आधार पर भविष्यवाणियों को अपराध माना जाएगा।
राज्यों
का मानना है कि नागरिकों में वैज्ञानिक सोच और जानने−समझने का जज़्बा विकसित किया जा सके। आस्था और मान्यता के नाम पर होने वाले गैर कानूनी
इरादों पर इससे लगाम लगेगी। भारतीय
समाज में लंबे वक्त तक बैठे धार्मिक अंधविश्वास ने अपनी पैठ बनाई
हुई थीं और अपनी जड़ें काफी गहरी करता चला गया। ऐसे में बाकी राज्यों को भी आगे आना होगा।
एक तरह से राष्ट्रीय
स्तर पर भी इस कानून की जरूरत है। आखिर जरूरत क्यों है, इसे समझना बड़ा जरुरी है।
यदि यह कानून पूरे देश में लागू नहीं किया गया तो 21 वीं सदी का विज्ञान हवा में
रह जायेगा और यह अंधविश्वास रूपी दीमक अन्दर ही अन्दर समाज के विवेक को चट कर
जाएगी क्योंकि लोग जागरूकता के अभाव में अंधश्रद्धा को ही धर्म और यहां तक जीवन का
कर्त्तव्य मान बैठते हैं। परंपरा के
नाम पर अनेकों अंधविश्वास है इन्हें धर्म का आचरण करने वाले कथित बाबा बढ़ावा दे
रहे है।
अंधविश्वास वह
बीमारी है जिससे हमनें अतीत में इतना कुछ गवांया। इसकी पूर्ति करने में पता नहीं हमें
कितने वर्ष और लगेगें। हम जब इतिहास उठाते हैं भारत की अनेकों हार का कारण जानना
चाहते तो उसमें सबसे बड़ा कारण हमेशा अंधविश्वास के रूप में सामने पाते हैं। याद कीजिए
सोमनाथ के मंदिर का इतिहास जब सोमनाथ मंदिर का ध्वंस करने महमूद गजनवी पहुंचा था।
तब सोमनाथ मंदिर के पुजारी इस विश्वास में आनन्द मना रहे थे कि गजनवी की सेना का
सफाया करने के लिए भगवान सोमनाथ जी काफी है। यदि इस अंधविश्वास में न रहे होते और
एक-एक पत्थर भी उठाकर गजनवी की सेना पर फेंकते तो सोमनाथ का मंदिर बच जाता और
भारतीय धराधाम का सम्मान भी।
अन्धविश्वास,
पाखण्ड एवं कुरीतियां अथवा मिथ्या परम्पराओं के कारण देश को अनेक
विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ा और आज भी देश की धार्मिक व सामाजिक स्थिति
सन्तोषजनक नहीं है। इस स्थिति को दूर कर पाने के लिए देश से अज्ञान व
अन्धविश्वासों का समूल नाश करना जरुरी हैं वरना धार्मिक तबाही पिछली सदी से कई
गुना बड़ी होगी।
दुर्भाग्य आज
सूचना क्रांति और तमाम तरक्की के इस दौर में भी यह संघर्ष जारी है, पाखंड
जारी है, अंधविश्वास जारी हैं और आज ये लुटेरे अपने नये रूप धारण कर नये हमले
कर रहे है। कोई बंगाली बाबा बनकर, भूत-प्रेत
वशीकरण के नाम पर, कोई नौकरी दिलाने के बहाने यहाँ तक कि परीक्षा
में अच्छे अंक हासिल करने के टोटके भी बंगाली बाबा बता रहे हैं।
नित्य नये
अंधविश्वास खड़ें हो रहे हैं। आज यह लोग झाड़-फूंक के जरिये गर्भ में पल रहे शिशु के
लिंग का पता लगाने और उसे बदलने के दावें कर महिलाओं को आसानी से शिकार बना रहे है,
बहुतेरे मामलों में महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण को अंजाम दिया
जाता रहा हैं। धार्मिक संस्कारों और ईश्वरीय शक्ति के
नाम पर गैर कानूनी तरह से लोगों का इलाज करना और डराया धमकाया जाता रहा है।
यदि देखा जाये
तो आज समाज में अंधविश्वास का बाजार इतना बढ़ चूका है कि जिसकी चपेट में पढ़े लिखें
भी उसी तरह आते दिख रहे है जिस तरह अशिक्षित लोग। जबकि यह लंबे संघर्ष के बाद मानव
सभ्यता द्वारा अर्जित किए गए आधुनिक विचारों और खुली सोच का गला घोंटने की कोशिश
है। यदि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर अंधविश्वास फैलाने वाले तत्वों के
खिलाफ, उसका प्रचार-प्रसार कर रहे लोगो के खिलाफ एक्शन लेने का प्रावधान बना दे,
आज भी काफी कुछ समेटा जा सकता है। यह सच है कि कानून तो अमल के बाद ही समाज के लिए
उपयोगी बन पाता हैं, किन्तु फिर भी उम्मीद है कि 21वीं सदी के दूसरे दशक में पहुंच
चुके हमारे समाज को ऐसे ऐतिहासिक कानून की आंच में विश्वास और अंधविश्वास के बीच
अंतर समझने में कुछ तो मदद मिलेगी। हमारा अतीत भले ही कैसा रहा हो पर आने वाली
नस्लों का भविष्य तो सुधर ही जायेगा।
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