आर्य कौन थे पहली
बात तो यह कोई प्रश्न ही नहीं है. किन्तु सन 1920 के बाद से इसे प्रश्न बनाकर सबसे
पहले अंग्रेज इतिहासकारों और उनके बाद कुछ भारतीय इतिहासकारों द्वारा इतना उलझाया
गया कि आधुनिक पीढ़ी के सामने आर्य कौन थे, कहाँ से आये थे?
वह भारतीय थे या बाहरी थे? वह किस संस्कृति के पुजारी थे, उनका
मूल धर्म क्या था?
आदि-आदि सवाल पर सवाल खड़े किये गये. धीरे-धीरे काल बदल रहा है, देश में सरकारे बदल
रही है, इतिहासकार बदले, सोच बदली यदि कुछ नहीं बदला सिर्फ एक
सवाल कि आर्य कौन थे.?
हाल ही में
हरियाणा के राखीगढ़ी से मिले 4,500 साल पुराने कंकाल के “पेट्रस बोन” के अवशेषों के अध्ययन का पूरा परिणाम
सामने आने जा रहा है एक बार फिर रटे-रटाये सिद्दांत को सिद्ध करने की तैयारी चल
रही कि क्या हड़प्पा सभ्यता के लोग संस्कृत भाषा और वैदिक हिंदू धर्म की संस्कृति
का मूल स्रोत थे? असल में पुरातत्ववेत्ता तथा पुणे के डेक्कन
कॉलेज के कुलपति डॉ. वसंत शिंदे की अगुआई वाली एक टीम द्वारा 2015 में की गई खुदाई
के बहुप्रतीक्षित और लंबे समय से रोककर रखे गए परिणामों में ऐसे अब खुलासे होने
वाले हैं. एक कंकाल को आधार बनाकर एक बार फिर यही साबित करने का प्रयास किया
जायेगा कि आर्य बाहरी और हमलावर थे.
क्योंकि जब 1920
के दशक में सिंधु घाटी सभ्यता पहली बार खोजी गई थी, तब
अंग्रेज पुरातत्वविदों ने इसे तत्काल पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता-संस्कृति के सबूत
के रूप में स्वीकार लिया और उन्होंने आर्य आक्रमणकारियों का एक नया सिद्धांत दिया
और कहा कि उत्तर-पश्चिम से आए आर्यों ने हड़प्पा सभ्यता को पूरी तरह नष्ट करके
हिंदू भारत की नींव रखी.
हालाँकि वसंत
शिंदे यह मत रखते हैं कि जिस तरह से राखीगढ़ी में समाधियां बनाई गई हैं वह
प्रारंभिक वैदिक काल सरीखी है. साथ ही वह ये भी जोड़ते हैं कि राखीगढ़ी में जिस तरह
से समाधि देने की परंपरा रही है वह आज तक चली आ रही है और स्थानीय लोग इसका पालन
करते हैं. लेकिन इसके साथ ही वह जोड़ते है कि यह वही काल है जिसमें आर्यों का भारत
में प्रवेश माना जाता है, जैसा कि आर्य आक्रमण सिद्धांत मानने
वाले निष्कर्ष निकालते हैं.
चलो एक पल के
लिए हम स्वीकार भी लें कि पश्चिमी विद्वान वास्तव में सही हैं और 1800 ईसा पूर्व
के बाद आर्यों ने भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश किया और यहाँ के मूलनिवासियों पर
हमला कर विशाल भूभाग पर कब्ज़ा कर लिया. किन्तु ध्यान देने योग्य है कि राखीगढ़ी या
हड़प्पा में किसी तरह की हिंसा, आक्रमण, युद्ध का
संकेत नहीं मिलता है. किसी तरह के विनाश का संकेत नहीं है और कंकालों पर किसी तरह
की चोट का निशान नहीं है.
दूसरा आर्य
बाहरी और वेद को मानने वाले लोग थे यदि यह एक पल को यह स्वीकार कर लिया जाये तो
आर्य कहाँ से आये और जहाँ से वह आये थे आज वहां वैदिक सभ्यता के लोग क्यों रहते है?
क्या वहां एक भी वैदिक सभ्यता नागरिक नहीं बचा था?
आज मात्र एक
कंकाल के डीएनए से यह साबित किया जा रहा है कि उसका डीएनए दक्षिण भारतीय लोगों से
काफी मिलता है पर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि यह कंकाल किसी व्यापारी, भ्रमण पर
निकले किसी जिज्ञाशु अथवा किसी राहगीर का नहीं होगा? यदि कल दक्षिण भारत में मिले
किसी कंकाल का डीएनए उत्तर-भारत के लोगों से मिलता दिख जाये तब क्या यह सिद्धांत
खड़ा कर दिया जायेगा कि आर्य मूल निवासी थे और द्रविड़ हमलावर उन्होंने समुद्र के
रास्ते हमला किया और इस भूभाग पर कब्ज़ा कर लिया?
यह एक काल्पनिक
मान्यता है कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण किया, उन्होंने
निश्चित रूप से भारत पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि उस समय भारत था ही नहीं वास्तव
में भारत को
एक सभ्यता के केन्द्र के रुप में आर्यों ने ही विकसित किया था. पश्चिमी
पुरातत्ववेत्ता एक तरफ तो आर्यों के भारत के बाहर से आने की सिद्धांत का समर्थन
करते हैं, दूसरी
ओर उनके अनुसार द्रविड़ भाषा बोलने वाले सिंध के रास्ते भारत
में प्रवेश कर रहे थे तो आखिर भारत के मूल निवासी थे कौन?
तीसरा आर्य बाहरी थे, उनकी भाषा संस्कृत
थी. तो आज यह भाषा भारत के अलावा कहीं ओर क्यों नहीं दिखाई देती? क्यों उत्तर और भारत
दक्षिण भारतीयों के धार्मिक ग्रन्थ, धार्मिक परम्परा एक हो गयी? अरबो, तुर्कों
अफगानियों ने भारत पर हमला किया अनेक लोग यहाँ बस भी गये तो क्या उनकी भाषा, उनका
मत उनके देशों से समाप्त हो गया?
आज सामाजिक और धार्मिक स्तर पर वियतनाम,
थाईलेंड, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, सुमात्रा, म्यन्मार आदि देशों में भारतीय वैदिक
परम्परा के चिन्ह मिलते है क्या इन देशों में भी आर्यों ने आक्रमण किया?
हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि आर्य, चाहे वे मूल रूप से मंगल के निवासी हों
या फिर भारत के, भारतीय सभ्यता के निर्माता वही थे. इस
उल्लेखनीय सभ्यता और सांस्कृतिक एकता को भारतीय सभ्यता के रूप में जाना जाता है,
इसकी जड़ें वैदिक संस्कृति में थीं जिसकी खनक पुरे देश में सुनाई देती
है.
आखिरकार,
यदि वैदिक लोग भारत के लिए विदेशी हैं क्योंकि वे 1800 ईसा पूर्व में
कथित रूप से भारत में प्रवेश कर चुके थे, तो फारसियों ने
भी 1000 ईसा पूर्व के बाद फारस में प्रवेश किया था तो क्या वह
भी फारस के लिए विदेशी हैं? 2000 ईसा पूर्व के बाद ग्रीस में प्रवेश करने वाले
ग्रीक, वहां के लिए विदेशी हैं. फ्रांसीसी फ्रांस के लिए विदेशी हैं क्योंकि
उन्हें भी पहली शताब्दी ई.पू. में रोमन विजय के दौरान लैटिन उपनिवेशवादियों द्वारा
लाया गया था. यदि सब विदेशी है तो क्या आज समस्त संसार में
कोई भी मूलनिवासी नहीं है. इससे पता चलता है कि यह सब हम भारतीय हिंदूओं को
अपराधबोध से ग्रसित करने के लिए, आपस में बाँटने के लिए काल्पनिक इतिहास घड दिया
गया है.
वैदिक लोग
भारतीय सभ्यता के निर्माता हैं. इस तथ्य को कोई भी नहीं बदल सकता है कि यही वह
वैदिक संस्कृति थी जिसने भारतीय सभ्यता के जन्म को जन्म दिया वैदिक धर्म भारत की
मूल संस्कृति है और कुछ भी इस तथ्य को बदल नहीं सकता है. बाकि
कुछ महीनों में साफ हो जाएगा मगर अभी तक जो कुछ भी राखीगढ़ी और यूपी के सिनोली में
मिला है, उससे एक बात तो साफ है कि इतिहास में कुछ तो जरूर बदलेगा?..राजीव चौधरी
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