शायद अब यह बात किसी से छुपी नहीं रही है कि चर्च में सब कुछ ठीक नहीं चल
रहा है। दुनियाभर में ईसाइयत के अनुयायियों का बर्ताव बदल रहा है। भारत में ईसाइयत
पहले चर्च में बदली अब यह चर्च ननों के शोषण के केंद्र बनते जा रहे हैं। इसी माह
केरल के कन्नूर में चर्च के पादरी द्वारा एक नाबालिग लड़की के साथ रेप का मामला
दर्ज हुआ है। इस मामले नाबालिग पीड़ित नन ने बच्चे को जन्म भी दिया। हालाँकि इसमें
मामले शामिल और यौन अपराध छिपाने के अपराध में पुलिस ने प्राइवेट हॉस्पिटल के
इंचार्ज, इसमें
शामिल अन्य पांच ननों को भी गिरफ्तार कर लिया है। इन सभी पर पादरी के रेप केस को
छुपाने का आरोप है। इस मामले से एक बार फिर ईसाइयत और चर्च की पवित्रता को संदेह
के कटघरे में खड़ा कर दिया।
इस पूरे मामले में देश-विदेश की मीडिया खामोश है। कारण यह मामला ईसाइयत से
जुडा है। यदि इस तरह का कोई मामला किसी मंदिर या अन्य हिन्दू धार्मिक संस्था से
जुड़ा होता तो अभी तक मीडिया इस पर सबसे बड़ी बहस या सबसे बड़ा सवाल बनाकर ताल ठोक
रही होती। हम यह नहीं कहते कि ऐसे सभी मामले दबाये जाये नहीं! गलत कार्य जहाँ भी
उन्हें उजागर कर दोषी को सजा होनी चाहिए किन्तु मीडिया को किसी धार्मिक पूर्वाग्रह
से शिकार नहीं रहना चाहिए।
यह सिर्फ एक अकेला मामला नहीं है ऐसे बहुतेरे मामले पहले भी संज्ञान में
आते रहे हैं। लेकिन उस तरह नहीं जिस तरह हिन्दू साधू संतां या पुजारियों को निशाना
बनाकर धर्म को नाम बदनाम किया जाता है। देश भर में ईसाई कॉन्वेंट स्कूलों में
बच्चों के यौन शोषण के मामलों में तेजी आई है। इससे इन स्कूलों में पढ़ने वाले
लाखों बच्चों की सुरक्षा पर सवाल गहराते जा रहे हैं। इस ताजा मामला के अलावा भी
केरल के कोच्चि के एक कॉन्वेंट स्कूल के प्रिंसिपल फादर बेसिल कुरियाकोस को 10 साल के लड़के के साथ कुकर्म के आरोप में
गिरफ्तार किया गया था। ये बच्चा किंग्स डेविड इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता था। बच्चे
के मां-बाप की शिकायत के बाद 65 साल के इस
दरिंदे पादरी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
जिस तरह आज कान्वेंट स्कूलों की संख्या बढ़ रही आधुनिक दौर में लोग इन्हें
शिक्षा के बेहतर विकल्प के तौर पर इनका चुन रहे हैं या अपनी सोसायटी में इनका
प्रचार करते भी नहीं थकते। जबकि इनका असली रूप कुछ और ही बयान करता है। 2014 में केरल के त्रिचूर में सेंट पॉल चर्च
के पादरी राजू कोक्कन को 9 साल की
बच्ची से रेप के केस में गिरफ्तार किया गया था। चर्च के अंदर दरिंदगी का ये अब तक
का सबसे खौफनाक मामला माना जाता है। इस वहशी पादरी ने चॉकलेट का लालच देकर बच्ची
को कई बार अपनी हवस का शिकार बनाया था। कम से कम तीन बार तो उसने ये काम चर्च के
अंदर अपने कमरे में किया। 2014 में ही
फरवरी से अप्रैल के बीच केरल के अंदर ही तीन कैथोलिक पादरी बच्चों से बलात्कार के
केस में गिरफ्तार किए गए। विडम्बना देखिये ज्यादातर मामलों में ईसाई संगठनों ने
शर्मिंदा होने के बजाय अपने पादरियों का बचाव किया। कुछ समय पहले ही केरल के एर्नाकुलम
में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी 41 साल के पादरी एडविन फिगारेज को एक साथ
दो-दो उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी ये पादरी कलाकार भी था और इसके कई म्यूजिक एलबम
बाजार में हैं। बच्ची को म्यूजिक सिखाने के नाम पर उसके साथ कई महीने तक दरिंदगी
की गई थी।
अप्रैल 2012 कैथोलिक
चर्च की एक पूर्व नन मैरी चांडी ने ईसाइयत के आध्यात्म से घिनौने सच से पर्दा
उठाया था। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘‘ननमा निरंजवले स्वस्तिक’’ के जरिये चर्चों में पादरियों द्वारा
ननों के यौन शोषण से पर्दा हटाकर हंगामा खड़ा कर दिया था। चर्च में होने वाले
अनैतिक कृकृत्यों के अलावा आत्मकथा में गर्भ में ही बच्चों को मार देने की बढ़ती
प्रवृत्ति का भी उल्लेख किया था। 2002 में धार्मिक अध्ययन के प्रोफेसर मैथ्यू
शेल्म्ज ने एक लेख में माना था कि भारत भर में फैले कैथोलिक चर्च में नन और बच्चों
के साथ यौन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं। हालांकि इसके बारे में ज्यादा बात नहीं होती
और अधिकतर केस पुलिस और कोर्ट तक कभी नहीं पहुंच पाते। दूरदराज के इलाकों में चल
रही मिशनरी में यौन शोषण के ज्यादातर केस दबे रह जाते हैं, क्योंकि पीड़ित अक्सर गरीब तबके के लोग
होते हैं और उन्हें पैसे देकर चुप करा दिया जाता है।
एक समय था जब मध्ययुगीन यूरोप का समाज अंधविश्वास का शिकार था। निरक्षर
जनता पादरियों के निर्देशन में संचालित होती थी और पादरी अपना प्रभाव
जमाए रखने के लिए जनसमुदाय में सभी प्रकार से अंधविश्वास फैलाकर अपना कुकृत्य करते
रहते थे। भारत के आदिवासी इलाकों में तो यही काम भगवान को ‘खुश’ करने के नाम पर हो रहा है। एक अनुमान
के मुताबिक भारत में होने वाले यौन अपराधों में मुश्किल से एक फीसदी केस पुलिस में
रिपोर्ट हो पाते हैं। इस कारण विदेशों में यौन शोषण और दूसरे अपराध में पकड़े जाने
वाले कई पादरी भी भागकर भारत आ जाते हैं और यहां उन्हें बाइज्जत किसी चर्च में
पादरी के तौर पर नियुक्त कर दिया जाता है। भारत ही नहीं यदि बाहर का रुख करें तो आस्ट्रेलिया
में बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाली रॉयल कमीशन नाम की संस्था
की जांच के मुताबिक देश के करीब 40 फीसदी
चर्च पर बच्चों के यौन शोषण के आरोप हैं। 1980 से 2015 के बीच करीब 4,500 लोगों ने यौन शोषण होने की शिकायत दर्ज
कराई थी यह कमीशन आस्ट्रेलिया में धार्मिक और गैर धार्मिक जगहों पर होने वाले यौन
शोषण की जांच करने की सबसे शीर्ष संस्था है। बहरहाल अब पीड़ितों की कहानियां अवसाद
भरी हो या दर्द भरी उनका शोषण कर पादरी और धार्मिक गुरू आसानी से बच जाते हैं।
क्योंकि बड़ी-बड़ी इसाई मिष्श्नरीज का मीडिया हाउस पर कब्जा है। जो ऐसे मामलों को
दबा देती है। बस एक बार फिर सवाल अपनी जगह फिर वही खड़ा है कि यदि
ऐसा कोई मामला किसी पंडित या पुजारी से जुड़ा होता तो क्या होता?
-राजीव चौधरी
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